उत्तर प्रदेश पुलिस रूल में सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रुकना दंड माना जाएगा या नहीं। सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रुकने के कारण प्रोन्नति से वंचित रहे उत्तर प्रदेश के एक सब इंस्पेक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर यह मुद्दा उठाया है। यूपी में पुलिसकर्मियों को हर वर्ष सत्यनिष्ठा प्रमाणपत्र (इंटेग्रिटी सर्टिफिकेट) मिलता है। गत वर्ष झांसी के एसपी ने एसआइ विजय कुमार का सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र इसलिए रोक दिया था क्योंकि उन्होंने एक मामले की जांच के दौरान केस डायरी में अभियुक्तों की आपराधिक पृष्ठभूमि दर्ज नहीं की थी। जस्टिस एके गांगुली की पीठ ने विजय कुमार की याचिका पर एडीजीपी, डीआइजी झांसी और एसएसपी झांसी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इससे पहले विजय कुमार के वकील राजकुमार गुप्ता ने पीठ से कानूनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस के सबॉर्डिनेट रैंक के अधिकारियों के दंड व अपील रूल 1991 में मेजर और माइनर पेनाल्टी का विधान दिया गया है। उसमें सत्यनिष्ठा प्रमाणपत्र रोकना दंड नहीं माना गया है। प्रोन्नति से वंचित रहने के बाद जब विजय कुमार ने एडीजीपी के समक्ष पुनर्विचार अर्जी दी तो उन्होंने यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी कि सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रुकना दंड नहीं है। गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कानूनी स्थिति स्पष्ट करे कि क्या सत्यनिष्ठा प्रमाणपत्र रुकना दंड माना जाएगा और इसका कर्मचारी के सर्विस कैरियर पर असर पड़ेगा अथवा नहीं क्योंकि अगर प्रमाणपत्र रुकना दंड नहीं है तो फिर उनके मुवक्किल की प्रोन्नति क्यों रुकी है? याचिका में यह भी कहा गया है कि अभियुक्त की आपराधिक पृष्ठभूमि न दर्ज करने के मामले में उसकी कोई गलती नहीं है क्योंकि उसने न तो अभियुक्तों को गिरफ्तार किया था और न ही एफआइआर दर्ज की थी। उसे तो बाद में यह मामला जांच के लिए दिया गया था। कहा गया है कि गत वर्ष झांसी के मोठ थाने में तैनात एसआइ महेंद्र सिंह ने सम्राट होटल के पास तीन-तीन बोतल शराब के साथ दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था। बाद में इस मामले की जांच विजय को दे दी गई।