Sunday, 2 October 2011

इंजीनियरिंग कालेज खोलना होगा मुश्किल

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो : देश में कहीं इंजीनियरिंग कॉलेजों की भरमार है तो कहीं उसमें पढ़ने के लिए छात्र ही नहीं हैं। सीटें खाली रह जाती हैं। सरकार का तजुर्बा है कि इससे शिक्षा के मामले में क्षेत्रीय विषमता जैसी भी दिक्कतें बढ़ रही रही हैं। लिहाजा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद इंजीनियरिंग कालेजों में हर साल दस प्रतिशत से अधिक सीटें खाली रहने वाले राज्यों में नए कॉलेज की मंजूरी देने से पहले राज्यों से उनकी जरूरत तलब करेगा। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के मुताबिक सरकार ने एआइसीटीई को इस बाबत जरूरी निर्देश दे दिए हैं। एआइसीटीई ऐसे सभी राज्यों को चिट्ठी लिखने जा रहा है, जिनके यहां के इंजीनियरिंग कॉलेजों में हर साल औसतन दस प्रतिशत या उससे अधिक सीटें खाली रह जाती हैं। मंशा यह जानने की है कि इंजीनियरिंग में जरूरत से अधिक सीटें होने के बावजूद क्या वहां और नए कालेज खोलने की मंजूरी दी जाए या फिर नहीं। तर्क यह है कि इस नए कदम से एक तो सही स्थिति का पता चल सकेगा, दूसरे-जिन राज्यों में और कालेजों की जरूरत होगी वहां नए कालेज खोले जा सकेंगे। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की अगुआई में बीते दिनों उच्च शिक्षा में कानूनी सुधार के मसले पर हुई संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में शैक्षिक रूप से पिछड़े प्रदेश के 374 जिलों में मॉडल डिग्री कालेजों को खोलने में दिक्कतों का भी सवाल उठा। इन कालेजों को खोलने में दो तिहाई धन राज्य सरकारों व एक तिहाई केंद्र को देना है। बीते दो-ढाई वर्षो के प्रयास के बाद केंद्र को राज्यों से अभी तक सिर्फ 44 प्रस्ताव मिले हैं। सदस्यों ने कहा कि राज्यों के पास धन की कमी है, इसलिए नए मॉडल डिग्री कालेज नहीं खुल पा रहे हैं। विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि पहले से चल रहे कॉलेजों को भी केंद्र व राज्य सरकारें अपने-अपने हिस्से का धन देकर उसे मॉडल डिग्री कालेज में तब्दील कर सकते हैं।
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