शासन के शीर्ष पदों पर बैठे लोग अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन को लेकर गंभीर नहीं, इसका एक नया प्रमाण यह है कि अभी कई राज्यों ने शिक्षा अधिकार कानून के संदर्भ में अधिसूचना तक जारी नहीं की है। अधिसूचना जारी न करने वाले राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्य तो हैं ही, केंद्रीय सत्ता की नाक के नीचे रहने वाला दिल्ली भी है। यह लेटलतीफी तब है जब छह से चौदह साल तक के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा देने का कानून बने हुए डेढ़ साल होने वाले हैं। इस कानून पर अमल महज सामाजिक दायित्व की पूर्ति ही नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया भी है। हालांकि सभी राज्य सरकारें शिक्षा की महत्ता का बखान करती रहती हैं, लेकिन जब इस दिशा में कुछ करने की बारी आती है तो वे तरह-तरह के बहाने से लैस हो जाती हैं। यह ठीक नहीं कि केंद्र सरकार इन बहानों को तवज्जो दे रही है। शिक्षा अधिकार कानून पर अमल में लापरवाही बरतने वाले राज्यों पर दबाव बनाने में केंद्र सरकार की यह दलील शायद ही काम आए कि इस कानून के हिसाब से अधिसूचना न जारी करने वाले राज्यों को नए स्कूलों के लिए धन नहीं दिया जाएगा। कोई आश्चर्य नहीं कि केंद्र सरकार की इस सख्ती के बावजूद राज्य सरकारें हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाएं। यह शिक्षा अधिकार कानून के प्रति राज्य सरकारों की उदासीनता ही है कि उन्होंने बार-बार याद दिलाए जाने के बाद अधिसूचना जारी की और कुछ राज्य तो अभी भी ऐसा करने में आनाकानी कर रहे हैं। इससे अधिक आश्चर्यजनक और कुछ नहीं हो सकता कि पिछले वित्तीय वर्ष के अंत तक सिर्फ 15 राज्यों ने शिक्षा अधिकार कानून पर अमल की अधिसूचना जारी की थी। जिस कानून को सामाजिक उत्थान के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया हो उसके संदर्भ में राज्य सरकारों का ढीला-ढाला रवैया सवाल खड़े करने वाला है। राज्य सरकारों के रवैये से यह स्पष्ट है कि इस कानून के अमल में अभी और देर होगी। ध्यान रहे कि अधिसूचना जारी करने मात्र से 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिलने वाला। ऐसा तो तब होगा जब पर्याप्त स्कूल, शिक्षक और अन्य संसाधन जुटा लिए जाएंगे। इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि संसाधनों के मामले में राज्य सरकारें आर्थिक तंगी का रोना रोती रहती हैं। हालांकि सर्वशिक्षा अभियान के तहत 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान करने में खर्च होने वाले धन का बड़ा भाग केंद्र सरकार वहन कर रही है, फिर भी राज्य सरकारें अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला देने से बाज नहीं आ रहीं। राज्य सरकारों के ऐसे आचरण को देखते हुए इसकी उम्मीद और भी कम है कि वे सर्वशिक्षा अभियान के तहत संचालित होने वाले स्कूलों की दशा सुधारने और उनमें गुणवत्ता प्रधान शिक्षा के लिए सचेत होंगी। इससे इंकार नहीं कि 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाना एक बड़ा काम है, लेकिन यह काम तब और दुरूह हो जाएगा जब राज्य सरकारें उसमें रुचि नहीं लेंगी। जब राज्य सरकारें इस मामले में उदासीनता का परिचय देंगी तब फिर यह लगभग तय है कि निजी क्षेत्र के स्कूल इस कार्य में सहयोग देने के लिए स्वेच्छा से तैयार होने वाले नहीं हैं।