बिजनौर, अश्वनी त्रिपाठी : अति पिछड़े गांव शेरगढ़ में पिछले दो शैक्षणिक सत्रों से पूर्व प्राथमिक स्कूल में कोई भी बच्चा दाखिला नहीं ले रहा है। मौजूदा सत्र में भी प्रशासन की तमाम कवायद के बाद अब तक चार बच्चों ने स्कूलों में दाखिला लिया है। इसकी वजह है गांव के स्कूल में उस जाति विशेष का अध्यापक नहीं है जिस जाति के लोगों का गांव में बाहुल्य है। गांव के लोगों को यह कतई मंजूर नहीं है कि दूसरे धर्म या बिरादरी का अध्यापक उनके बच्चों को पढ़ाएं। मुरादाबाद-बिजनौर हाइवे पर स्थित शेरगढ़ में दो वर्ष पहले तक कोई स्कूल नहीं था। दो साल पूर्व प्राथमिक विद्यालय का निर्माण कराया गया। इस स्कूल में मो. असलम को मुख्य अध्यापक नियुक्त किया गया। गांव में ठाकुर जाति का बाहुल्य है। ग्रामीणों ने विद्यालय में अपनी जाति के अध्यापक की नियुक्ति करानी चाही। यह मांग पूरी न होने पर उन्होंने अपने बच्चों का प्रवेश ही स्कूल में नहीं कराया। प्रशासन की तमाम कोशिशों के बाद इस साल सिर्फ चार बच्चों ने स्कूल में दाखिला लिया है। मोहम्मद असलम ने बताया कि बीएसए को गांव के माहौल तथा स्कूल की स्थिति से अवगत कराया गया है, लेकिन स्कूल की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा। शेरगढ़ के प्रधान मोहन सिंह का कहना है कि स्कूल में मुख्य अध्यापक के पद पर मोहम्मद असलम की तैनाती की गई है। सहायक अध्यापक के पद पर अंजुल चौहान नियुक्त हैं, लेकिन वह कभी स्कूल नहीं आतीं। ग्रामीणों की मांग है कि मुख्य अध्यापक के पद पर किसी अन्य को नियुक्त किया जाए। ऐसा होने पर ही स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ेगी। बिजनौर के बेसिक शिक्षा अधिकारी बनवारी लाल ने गुरुवार को स्कूल का भ्रमण किया तो वहां तीन बच्चे ही मौजूद मिले।