राजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली
भारत को ‘नॉलेज इकोनॉमी’ में विश्व का हब बनने का सपना सरकार भले ही देख रही हो, लेकिन सच्चाई यह है कि देश का शैक्षिक ढांचा बुरी तरह चरमरा रहा है। जिस देश में स्कूली शिक्षकों के साढ़े बारह लाख और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में छह हजार से अधिक पद खाली हों, वहां शैक्षिक बदहाली का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
शिक्षकों की कमी को पूरा करने और योग्य शिक्षकों के बिना क्वालिटी एजूकेशन (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) के मोर्चे पर राज्य सरकारें तो गुनहगार हैं ही, लेकिन केंद्र खुद भी कठघरे में है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी),भारतीय प्रबंध संस्थान (आइआइएम), भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं शोध संस्थान और भारतीय प्रबंध संस्थानों (आइआइएम) जैसे संस्थान भी इस बदहाली से अछूते नहीं हैं। अकेले आइआइटी फैकल्टी के कुल 5092 पदों में 1611 खाली हैं। तो आइआइएम में स्वीकृत 638 पदों में 111 खाली चल रहे हैं। सरकार केंद्रीय विश्वविद्यालयों को राज्य विवि की तुलना में बेहतर मानती है। जबकि, वहां स्थिति और बदतर है, जहां 6542 पदों पर शिक्षक ही नहीं हैं। इनमें शिक्षकों के 16,602 स्वीकृत पद हैं।
जहां तक स्कूली शिक्षकों की कमी का सवाल है तो उसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, प. बंगाल, झारखंड समेत लगभग आधा दर्जन राज्यों ने देश की तस्वीर बिगाड़ रखी है। देश में कुल साढ़े बारह लाख स्कूली शिक्षकों की जो कमी है, उनमें आधी छह लाख 26 हजार इन्हीं राज्यों में है। 20 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तीन लाख 12 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं। बिहार में नीतीश कुमार सरकार की वाहवाही हो रही है, जबकि वहां दो लाख 62 हजार स्कूली शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं। प. बंगाल में स्कूली शिक्षकों के एक लाख अस्सी हजार पद खाली हैं। भाजपा शासित मध्य प्रदेश में 89 हजार शिक्षकों के पद भरे जाने का इंतजार कर रहे हैं। इसी तरह दिल्ली में भी दस हजार शिक्षकों के पद रिक्त हैं
भारत को ‘नॉलेज इकोनॉमी’ में विश्व का हब बनने का सपना सरकार भले ही देख रही हो, लेकिन सच्चाई यह है कि देश का शैक्षिक ढांचा बुरी तरह चरमरा रहा है। जिस देश में स्कूली शिक्षकों के साढ़े बारह लाख और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में छह हजार से अधिक पद खाली हों, वहां शैक्षिक बदहाली का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
शिक्षकों की कमी को पूरा करने और योग्य शिक्षकों के बिना क्वालिटी एजूकेशन (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) के मोर्चे पर राज्य सरकारें तो गुनहगार हैं ही, लेकिन केंद्र खुद भी कठघरे में है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी),भारतीय प्रबंध संस्थान (आइआइएम), भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं शोध संस्थान और भारतीय प्रबंध संस्थानों (आइआइएम) जैसे संस्थान भी इस बदहाली से अछूते नहीं हैं। अकेले आइआइटी फैकल्टी के कुल 5092 पदों में 1611 खाली हैं। तो आइआइएम में स्वीकृत 638 पदों में 111 खाली चल रहे हैं। सरकार केंद्रीय विश्वविद्यालयों को राज्य विवि की तुलना में बेहतर मानती है। जबकि, वहां स्थिति और बदतर है, जहां 6542 पदों पर शिक्षक ही नहीं हैं। इनमें शिक्षकों के 16,602 स्वीकृत पद हैं।
जहां तक स्कूली शिक्षकों की कमी का सवाल है तो उसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, प. बंगाल, झारखंड समेत लगभग आधा दर्जन राज्यों ने देश की तस्वीर बिगाड़ रखी है। देश में कुल साढ़े बारह लाख स्कूली शिक्षकों की जो कमी है, उनमें आधी छह लाख 26 हजार इन्हीं राज्यों में है। 20 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तीन लाख 12 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं। बिहार में नीतीश कुमार सरकार की वाहवाही हो रही है, जबकि वहां दो लाख 62 हजार स्कूली शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं। प. बंगाल में स्कूली शिक्षकों के एक लाख अस्सी हजार पद खाली हैं। भाजपा शासित मध्य प्रदेश में 89 हजार शिक्षकों के पद भरे जाने का इंतजार कर रहे हैं। इसी तरह दिल्ली में भी दस हजार शिक्षकों के पद रिक्त हैं