भोपाल, जागरण ब्यूरो : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि श्रीमद्भगवत गीता धर्म विशेष का ग्रंथ नहीं वरन जीवन दर्शन है, जिससे नागरिकता का प्रशिक्षण मिलता है। कोर्ट ने कहा कि गीता से न्यायिक नियंत्रण व सामाजिक सौहार्द का नैतिक संदेश भी हासिल होता है। गीता भारतीय दर्शन की एक आवश्यक पुस्तक है, जिसका नैतिक आचरण पर विशेष जोर है। इसके साथ ही कोर्ट ने मध्य प्रदेश कैथोलिक विशप परिषद द्वारा दायर जनहित याचिका सारहीन पाकर खारिज कर दी। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश कैथोलिक विशप परिषद ने राज्य सरकार द्वारा आगामी शैक्षणिक सत्र (वर्ष 2012-13) से प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में गीता सार को शामिल किए जाने के फैसले को चुनौती दी थी। परिषद की याचिका को जस्टिस अजित सिंह और जस्टिस संजय यादव की खंडपीठ ने सारहीन पाते हुए शुक्रवार को खारिज कर दिया। परिषद के प्रवक्ता आनंद मुटंगल ने याचिका में कहा था कि सरकार का फैसला संविधान के अनुच्छेद 28 (1) का उल्लंघन है। मुटंगल के अधिवक्ता राजेश चंद ने तर्क दिया कि इस अनुच्छेद के तहत राज्य सरकार इस तरह धर्म विशेष के धर्म ग्रंथ को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का दबाव नहीं बना सकती। यदि ऐसा किया जा रहा है तो फिर क्यों न अन्य धर्मो की पुस्तकों के सार या अंश भी शैक्षणिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाएं।