Thursday 26 January 2012

न्यायिक समीक्षा से परे नहीं स्पीकर के फैसले

माला दीक्षित, नई दिल्ली सुप्रीमकोर्ट ने बुधवार को दिए एक फैसले में कहा है कि निर्दलीय विधायकों को सरकार से समर्थन वापस लेने और किसी और को समर्थन देने के आधार पर दलबदल कानून के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। कानून में उनके समर्थन देने या वापस लेने पर कोई रोक नहीं है। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही कहा है कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय संसद और विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता के बारे में स्पीकर के आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं। अदालत ने इस आदेश से विधायिका व न्यायपालिका के बीच अधिकारों की नयी बहस छेड़ दी है। न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और सीरिक जोसेफ की पीठ ने अक्टूबर 2010 में येद्दयुरप्पा सरकार के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने की पूर्व संध्या पर ग्यारह भाजपा और पांच निर्दलीय विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर के आदेश को गलत करार देते हुए इसके कारण जारी किये। हालांकि शीर्ष अदालत गत वर्ष 13 मई को ही फैसला सुना चुका था। आज विस्तार से जारी फैसले में कोर्ट ने कारण बताए हैं। जिसमें कहा गया है कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची में सदस्यों की अयोग्यता के बारे में अर्ध न्यायिक प्राधिकरण (क्वासी ज्युडिशियल फंक्शन) की तरह फैसला करता है। ऐसे में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय उसके अंतिम आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं। अब यह कानूनन तय हो चुका है कि स्पीकर का अंतिम आदेश संविधान में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय को मिले अधिकार पर रोक नहीं लगाता। शीर्ष अदालत अनुच्छेद 32 व 136 तथा उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत स्पीकर के आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकते हैं। मालूम हो कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को इन अनुच्छेदों में विशेष सन्निहित शक्तियां (इनहेरेंट पावर) मिली हुई हैं। अदालत ने पक्षकारों की उन दलीलों को ठुकरा दिया जिसमें कहा गया था कि किसी सदस्य की अयोग्यता के बारे में विधानसभा अध्यक्ष का फैसला संवैधानिक प्रावधानों में अंतिम माना जाता है। अदालत ने कहा, कर्नाटक के विधानसभा अध्यक्ष का विधायकों का अयोग्य ठहराने का आदेश दुर्भावना पूर्ण था। तथ्यों को देखने से पता चलता है कि अध्यक्ष सिर्फ प्लोर टेस्ट के पहले विधायकों को अयोग्य ठहराना चाहते थे इसीलिए उन्होंने इतनी जल्दबाजी में कार्यवाही की जिससे विधायकों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका नहीं मिला। शीर्ष अदालत ने कहा है कि निर्दलीय विधायकों को सरकार से समर्थन वापस लेने और किसी और को समर्थन देने के आधार पर दलबदल कानून के तहत अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। कानून में उनके समर्थन देने या वापस लेने पर कोई रोक नहीं है। सत्ताधारी दल को समर्थन देने या उसकी बैठकों और रैलियों में निर्दलियों के भाग लेने से यह साबित नहीं होता कि वे उस राजनैतिक दल में शामिल हो गए हैं। इसलिए निर्दलीय के महज सरकार में शामिल होने या मंत्री बनने से उसके राजनैतिक दल ज्वाइन करना साबित नही होता।
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