पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में तीसरी पत्नी की संतान को अनुकंपा पर नौकरी पाने का हकदार माना है। न्यायाधीश नवीन सिन्हा की पीठ ने मुस्लिम पर्सनल लॉ की व्याख्या करते हुए अपने आदेश में कहा कि सरकारी सर्कुलर, पर्सनल लॉ से ऊपर नहीं हो सकता है। ऐसे में तीसरी पत्नी के बच्चे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। यह आदेश मो. शमशाद की याचिका पर दिया गया है। मो. शमशाद की मां नाजिया, मुस्लिम मियां की तीसरी बीवी हैं। मुस्लिम मियां, सुपौल के पूर्वी तटबंध प्रमंडल के बांध के चौकीदार थे और सेवाकाल में उनकी मौत हो गई थी। सुपौल के जिलाधिकारी ने शमशाद की अर्जी 28 सितंबर 2011 को यह कहकर खारिज कर दी थी कि वह मृत कर्मचारी (मुस्लिम मियां) की तीसरी बीवी की संतान है। शमशाद ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी मांगी थी। बिहार सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1976 के खंड 23 के तहत पहली बीवी के जीवित रहते दूसरी बीवी नहीं रखने की बात है। ऐसा करने के लिए राज्य सरकार की स्वीकृति जरूरी है और मुस्लिम मियां ने ऐसा नहीं किया था। जिलाधिकारी के निर्णय के खिलाफ शमशाद ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील सतीश चन्द्र झा ने कहा कि पर्सनल लॉ के हिसाब से चार बीवी जायज हैं। अदालत का मानना था कि सरकारी सर्कुलर, पर्सनल लॉ से नीचे है। ऐसे में पीडि़ता को उसका पूरा हक मिलना चाहिए। सुनवाई के दौरान यह बात सामने आयी कि अपनी नौकरी के दौरान मुस्लिम मियां ने तीन शादियां कीं। पहली बीवी से उनका तलाक हो गया था। हसीना दूसरी बेगम बनीं। कुछ दिन बाद मुस्लिम मियां ने नाजिया से शादी कर ली। शमशाद, नाजिया व मुस्लिम मियां की संतान हैं। सरकारी कर्मचारी रहते मुस्लिम मियां 21 सितंबर 2008 को चल बसे।