Thursday 24 March 2011

धन के दुरुपयोग से बाज नहीं आ रहे राज्य

राजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली सवाल तो वर्षो से उठ रहे हैं, लेकिन राज्य सरकारें मिड डे मील के खाद्यान्न और उसके धन के दुरुपयोग से बाज नहीं आ रही हैं। यही नहीं, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए केंद्र से दबाव के बाद भी तवज्जो नहीं दी जा रही है। राज्यों की यह कार्यशैली संसदीय समिति को भी नागवार गुजरी है, इसलिए उसने दोषियों पर ऐसी कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की है, ताकि फिर कोई उसे दोहरा न सके। हैरत की बात है कि स्कूली बच्चों के लिए चलाई जा रही मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील) का खाद्यान्न और धन दोनों कहीं और खर्च हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे आधा दर्जन राज्यों ने खुद माना है कि उनके यहां खाद्यान्न एवं योजना की निधियां कहीं और खर्च की गई हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने इस बात पर गहरी नाराजगी जताई है कि केंद्र के निर्देशों के बाद भी राज्यों ने दोषी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की न तो जवाबदेही तय की और न नुकसान की भरपाई के लिए उनसे वसूली ही की। समिति ने सरकारी धन खर्च में कठोर अनुशासन की लापरवाही पर न सिर्फ राज्यों की भ‌र्त्सना की है, बल्कि इस मद के धन एवं खाद्यान्न का दूसरे मदों में उपयोग को स्पष्ट रूप से राजकोषीय अनुशासनहीनता माना है। लिहाजा निधियों एवं खाद्यान्न के दुरुपयोग की सही वजहों का न सिर्फ पता लगाना जरूरी है, बल्कि दोषियों की जवाबदेही तय करने के साथ ही उनके खिलाफ कड़ी दंडात्मक कार्रवाई भी जरूरी है जिससे भविष्य में फिर इस तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश न रह जाए। मिड डे मील बनाने का काम कैटरर को सौंपने पर भी हो विचार मिड डे मील तैयार करने की मौजूदा व्यवस्था को संसदीय समिति ने त्रुटिपूर्ण मानते हुए उसे फिर से परिभाषित और स्पष्ट करने की बात कही है। इसके लिए ऐसी प्रणाली बनाने की जरूरत है जिसमें रसोइया और सहायक की अलग से या फिर विद्यालय स्टाफ के साथ संबद्ध के रूप में नियुक्ति की जा सके। मंशा यह है कि शिक्षकों पर अतिरिक्त भार न पड़े। समिति ने इसी क्रम में वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में उपयुक्त एवं विशिष्ट क्षेत्रों में मिड डे मील बनाने का काम कैटरर को सौपने की संभावना पर विचार करने की भी सिफारिश की है।
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