मनजीत सिद्धू, चंडीगढ़ :
ईटीटी पेपर लीक कांड में उच्च अधिकारियों पर तो गाज गिर गई, लेकिन शेष माफिया का सरगना कौन है, इस गिरोह में कितने लोग शामिल हैं, किस परीक्षा केंद्र पर पेपर लीक हुआ? इन सवालों पर शिक्षा विभाग के उच्च सूत्रों के अनुसार जांच रिपोर्ट चुप है। जानकारी के अनुसार, शिक्षा विभाग के अतिरिक्त सचिव संजय पोपली की 99 पन्नों की जांच रिपोर्ट का केंद्र एससीईआरटी कार्यालय और इसके उच्च अधिकारी ही रहे। रिपोर्ट में दस्तावेजों, वीडियो फुटेज और फोटोग्राफ्स के आधार पर साबित किया गया कि ईटीटी पेपर के पिं्रट होने से लेकर उसे संभालने व परीक्षा केंद्रों में पहुंचाए जाने के तरीके में कमियां ही कमियां थीं। यहां तक कि एससीईआरटी निदेशक के कार्यालय में बिना सील वाले सेलो टेप लगे लिफाफों में पेपर पड़े थे। इसके अलावा पेपर को परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने के लिए सीलबंद पेटियों के बजाय राशन की दुकानों पर मिलने वाले डिब्बों का इस्तेमाल किया गया। उच्च सूत्र बताते हैं कि जांच अधिकारी ने जांच से पहले यूनिवर्सिटियों व अन्य शिक्षा संस्थानों से पेपर के पिं्रट होने से लेकर परीक्षा केंद्र तक पहुंचाए जाने के लिए इस्तेमाल किए जाते सुरक्षित और गोपनीय मापदंडों की सूची बनाई और उसके आधार पर प्रश्नपत्र तैयार कर जांच में शामिल किए अधिकारियों और डाइट संस्थानों के प्रिंसीपलों व अन्य लोगों से लिखित में जबाव लिए। जांच रिपोर्ट कहती है कि एससीईआरटी निदेशक सहित तीनों अधिकारी पेपर की सुरक्षा और गोपनीयता के लिए निर्धारित मापदंड अपनाने में पूरी तरह असफल रहे, जिसके कारण उन पर कार्रवाई करने की सिफारिश की गई। उच्च सूत्र कहते हैं कि 66 पन्नों के दस्तावेजी सबूतों के अलावा 30 पन्नों की मूल जांच रिपोर्ट उस तरफ नहीं बढ़ सकी कि आखिर मंत्री के पास पेपर पहुंचाने वाला वह जासूस कौन था और सबसे पहले पेपर लीक होने का खुलासा किस परीक्षा केंद्र से हुआ? वर्णनीय है कि निलंबित किए गए निदेशक अवतार सिंह इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि कहीं कोई पेपर लीक हुआ है। उन्होंने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग करते हुए न केवल इस जांच रिपोर्ट को एकपक्षीय जांच करार दिया, बल्कि शिक्षा मंत्री सेवा सिंह सेखवां को ही कठघरे में खड़ा कर दिया कि जांच की शुरुआत उन लोगों से होनी चाहिए थी, जिन्होंने शिक्षा मंत्री के पास लीक हुआ और कथित पेपर पहुंचाया है।