Friday, 9 December 2011

शून्य का सबक

राज्य अध्यापक पात्रता परीक्षा (एचटेट) के परिणामों के विश्लेषण से कई गंभीर मुद्दे सामने आ रहे हैं। कुछ परीक्षा प्रक्रिया की खामियों, अव्यावहारिकताओं से जुड़े हैं तो कई भावी अध्यापकों की योग्यता, दृष्टिकोण और तर्कशक्ति से संबंधित हैं। चार लाख से अधिक भावी अध्यापक पात्रता परीक्षा में बैठे, केवल 17 फीसद पास हुए। 3400 तो अंकों का खाता भी नहीं खोल पाए, 600 भावी गुरु जी ओएमआर शीट से कन्नी काट गए और सवालों का जवाब देना भी उचित नहीं समझा। विडंबना देखिये कि जिस परीक्षा के लिए दूसरे जिलों, कस्बों, गांवों में पहुंचने के लिए धन और समय लगाया, परीक्षा केंद्र में पहुंचकर ऐन वक्त पर बहिष्कार कर दिया। क्या यह संसाधनों का अपव्यय नहीं? रही बात शून्य पर अटकने वाले 3400 भावी शिक्षकों की, यह उनकी अक्षमता या अव्यावहारिकता थी या परीक्षा प्रक्रिया की कोई गंभीर तकनीकी खामी, यह जांच का विषय हो सकता है। ओएमआर शीट की री-चेकिंग का बोर्ड की ओर से कोई प्रावधान नहीं लेकिन व्यापक संदर्भो में दोबारा चेकिंग अवश्य कराई जानी चाहिए। यदि कोई तकनीकी खामी या त्रुटि नजर आए तो शिक्षा बोर्ड को उसे दुरुस्त करना चाहिए। बात गले उतरने वाली नहीं कि इतनी बड़ी संख्या में भावी शिक्षकों का बौद्धिक स्तर इतना कमजोर होगा। विशेष परिस्थितियों में बोर्ड को री-चेकिंग के लिए सार्थक पहल करनी चाहिए। शिक्षा बोर्ड को यह ध्यान भी रखना चाहिए ओएमआर शीट का प्रावधान 2008 में स्कूलों में छठी कक्षा से किया गया था। पहला वर्ष तो अध्यापकों ने ओएमआर शीट को समझने में ही गुजार दिया। अगले ही वर्ष स्कूलों में सेमेस्टर सिस्टम लागू हो गया और बोर्ड की ओर से निर्णय किया गया कि एक सेमेस्टर में सामान्य उत्तर पुस्तिका और दूसरे में ओएमआर शीट का प्रावधान रहेगा। जिस प्रयोग को लेकर अध्यापक भी सहज नहीं हो पाए, छात्रों की रुचि उसमें कितनी बन पाएगी, आसानी से समझा जा सकता है। सिर्फ दो साल में ही ओएमआर शीट के प्रयोग का रोल बैक हो गया। फिलहाल मामला छात्रों का नहीं भावी अध्यापकों का है। यह मानना सहज-स्वाभाविक है कि ये सभी अभ्यर्थी परिपक्व हैं और ओएमआर शीट को भली भांति समझ सकते हैं लेकिन परिस्थितियां देखकर यही अनुमान लगाया जा सकता है कि कहीं न कहीं गंभीर खामी रही है।
;