कविलाश मिश्र, नई दिल्ली समय बदलने के साथ भले ही लड़कियों की शिक्षा के प्रति लोग जागरूक हुए हो और लोगों के जीवन यापन में अमूल-चूल परिवर्तन आया हो लेकिन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी बेटा व बेटी को लेकर ज्यादातर लोगों की सोच में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया हैं। सोच परंपरा के अनुसार है। बेटा-बेटी में अभी भी भेदभाव किया जा रहा है। यह संकेत दिल्ली सरकार के उन आंकड़ों से मिल रहे हैं जो दिल्ली के सरकारी स्कूलों से संबद्ध है। लड़कियों की तादाद सरकारी स्कूलों में ज्यादा है जबकि लड़कों को बेहतर शिक्षा के लिए महंगे पब्लिक स्कूलों में पढ़ाया जाता है। दरअसल सरकारी स्कूलों के इन आंकड़ों में सरकारी स्कूलों में लड़कियों की संख्या लड़कों से न केवल ज्यादा है बल्कि स्कूल में प्रतिवर्ष लड़कियां ज्यादा प्रवेश भी ले रही है। जबकि दिल्ली में जनगणना-2011 के अनुसार लिंग अनुपात प्रति एक हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या 867 हैं। जबकि, दिल्ली सरकार के स्कूलों में वर्ष 2011-12 में प्रति 1000 लड़कियों पर लड़कों की संख्या 995 हैं।दिल्ली सरकार के समाज कल्याण मंत्री प्रो.किरण वालिया स्कूलों में लड़कियों की बढ़ रही संख्या से तो खुश हैं लेकिन उन्हें भी सामाजिक ताना-बाना की चिंता सता रही हैं। उनका कहना है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने की गुणवत्ता बहुत अच्छी हैं, ऐसे में लड़कों की संख्या में भी वृद्धि होनी चाहिए। हालांकि लड़कियों की संख्या बढ़ने का एक कारण उन्होंने लाडली योजना को बताया है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2005-06 में जहां सरकारी स्कूलों में लड़कों की संख्या करीब 4.98 लाख थीं वहीं लड़कियों की संख्या 5.11 लाख थीं। यह वह समय था जब लाडली योजना (जो मूलरूप से दिल्ली सरकार ने लड़कियों के लिए रखी है) लागू नहीं हुई थी। लाड़ली योजना की शुरूआत फरवरी 2008 से हुई है। यह संख्या बढ़कर वर्ष 2011-12 में लड़कों की 7.45 लाख के करीब हो गई और लड़कियों की संख्या करीब 7.49 लाख हो गई। विभाग के अधिकारी बताते है कि लाडली योजना के कारण यह संख्या और ज्यादा होनी चाहिए थी। इसलिए यह कहना पूरी तरह से सही नहीं है कि लड़कियों की संख्या सरकारी स्कूलों में इसलिए ज्यादा है कि दिल्ली में लाडली योजना लागू है। 12वीं पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा को बताते हुए शिक्षा मंत्री अरविंदर सिंह लवली ने कहा कि सरकारी स्कूलों में लड़कियों की बढ़ रही संख्या इस बात के संकेत है कि लोगों में लड़कियों को पढ़ाने का रुझान आ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि यहां पर लड़का-लड़की के लिंगानुपात में अंतर है। लेकिन यहां तो लड़कियां ही लड़कों से ज्यादा है। साफ है, अभी भी लोगों के मन मस्तिष्क में यह बात धरी हुई है कि बेटियों को अच्छी शिक्षा देने से क्या लाभ? कहीं न कहीं बेटे को उच्च कोटी की शिक्षा देने के प्रति उनकी इच्छा काफी बलवती है।