Saturday 24 September 2011

कोर्ट को भी नहीं न्यूनतम सजा कम करने का अधिकार

नई दिल्ली, एजेंसी : शीर्ष अदालत ने रेखांकित किया है कि आपराधिक अपराधों के लिए कानून जिनमें भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम भी शामिल है, के तहत अदालतें दंड की न्यूनतम सीमा कम नहीं कर सकती हैं। न्यायमूर्ति पी. साथाशिवम और बीएस चौहान की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह आदेश भारतीय रेलवे के हेड क्लर्क एबी भास्कर राव की याचिका खारिज करते हुए दिया। राव को सीबीआइ ने अपने एक सहकर्मी से 14 नवंबर 1997 को उसके पक्ष में कार्य करने के लिए 200 रुपये की रिश्वत मांगने और लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था। खंडपीठ ने कहा कि कानून में निर्धारित सजा को न तो अदालतें कम कर सकती हैं और न ही सुप्रीम कोर्ट । जबकि अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि दो पार्टियों के बीच पूर्ण न्याय की प्रक्रिया में जरूरी हो तो डिक्री या आदेश दे सकता है। एक जनसेवक के भ्रष्टाचार के मामले में राशि की मात्रा महत्वहीन है। यह अपराधी के बर्ताव पर निर्भर करता है और अभियोजन पक्ष द्वारा साबित की गई मांग व स्वीकृति के बारे में सबूत है। सिर्फ इसलिए कि सजा के कारण अपराधी अपनी नौकरी खो देगा, सजा कम नहीं हो सकती। राव को धारा सात के तहत दोषी ठहराया गया था, जिसके बाद उन्हें छह महीने के सश्रम कारावास और 500 रुपये का जुर्माना देने का आदेश दिया गया था। याचिकाकर्ता ने याचिका दायर करते हुए कहा था कि चूंकि मामला 14 साल पुराना है, इसलिए अदालत को अनुच्छेद 142 के तहत उसे रियायत दे देनी चाहिए।
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