प्रदीप शाही, पटियाला पंजाब में 65 प्रतिशत सरकारी डिग्री कालेजों में प्रिसिंपल ही नहीं हैं। लेक्चररों के भी 74 फीसदी पद रिक्त चल रहे हैं। शिक्षा व्यवस्था की बदहाली को छिपाने के लिए अंशकालिक (पार्टटाइम) और संविदा (ठेके) पर लेक्चररों की नियुक्ति कर रिक्त पदों को भरा जा रहा है। राज्य के 52 सरकारी कालेजों में प्रिंसिपलों के पदों को भरने के लिए दो तरह की प्रक्रिया (सीधी और पदोन्नति) अपनाई जाती है। राज्य में प्रिंसिपलों के 13 पद सीधी भर्ती और 39 पद पदोन्नति से भरे जाते हैं, लेकिन सीधी भर्ती से भरे जाने वाले 13 पदों में से 11 पिछले छह सालों से खाली पड़े हैं। वहीं, प्रोन्नति वाले प्रिंसिपलों के 39 पदों में से मात्र 19 पद भरे हैं। 20 पद रिक्त पड़े हैं। इन पदों को भरने वाली विभागीय प्रोन्नति समिति (डीपीसी) की करीब पौने तीन साल से कोई बैठक ही नहीं हो पाई है। सहायक प्रोफेसर तथा लेक्चररों के पदों की यदि बात करें तो राज्य में इनके कुल 1873 पद हैं। इनमें से नियमित लेक्चररों के मात्र 800 पद ही भरे हैं। 1073 पद खाली पड़े हैं। सबसे खास बात यह है कि पार्टटाइम व ठेके पर लेक्चररों की नियुक्ति कर रिक्त पदों को भरा जा रहा है। पार्टटाइम लेक्चरर को सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय 21600 रुपये मासिक वेतन अदा किया जा रहा है, जबकि ठेके पर नियुक्त लेक्चररों को हर माह सात हजार रुपये तनख्वाह भी पैरेंट्स टीचर्स एसोसिएशन की ओर से दी जाती है। राज्य के सरकारी कालेजों में 800 पदों पर गेस्ट फैकल्टी लेक्चरर नियुक्त हैं। सरकार रिक्त पद शीघ्र भरे : सरकारी कालेज टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश प्रधान जयपाल सिंह कहते हैं कि प्रिंसिपल हो या लेक्चरर, दोनों वर्गो में रिक्त पदों के चलते कालेजों में पढ़ाई पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। सीनियर लेक्चरर को प्रिंसिपल का अतिरिक्त कार्यभार संभालना पड़ रहा है।