नीलू रंजन, नई दिल्ली सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कानून के दायरे से खुद को बाहर रखने के लिए सीबीआइ भले ही सरकार को मनाने में सफल रही हो, लेकिन इसे दिल्ली हाईकोर्ट के सामने सही ठहराना उसके लिए मुश्किल हो रहा है। पूरी छानबीन के बाद सीबीआइ को ऐसे उदाहरण नहीं मिल रहे हैं, जिससे आरटीआइ के तहत सूचना देने के कारण उसके किसी अधिकारी की जान खतरे में पड़ने या केस की जांच प्रभावित होने को साबित किया जा सके। सीबीआइ को आरटीआइ से बाहर करने के सरकार के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट में सीबीआइ ने तीन कारणों से खुद को आरटीआइ से बाहर रखने के फैसले को सही ठहराने की कोशिश की थी। एजेंसी का कहना था कि बड़े और हाईप्रोफाइल अपराधियों से जुड़े मामलों की सूचना आरटीआइ के तहत देने से जांच से जुड़े अधिकारियों की सुरक्षा खतरे पड़ सकती है। साथ ही इससे जांच भी प्रभावित हो सकती है। सीबीआइ ने इससे देश की आंतरिक सुरक्षा पर खतरे का भी तर्क दिया था। पर हाईकोर्ट ने सीबीआइ को आरटीआइ से होने वाले नुकसान का प्रमाण देने को कह दिया। हाईकोर्ट ने सीबीआइ को यह बताने को कहा कि पिछले सात सालों में आरटीआइ के दायरे में रहते हुए किन-किन मामलों में सूचना देने पर उसके अधिकारियों की जान या माल को खतरे का सामना करना पड़ा और कितने मामलों में जांच प्रभावित हुई। सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि आरटीआइ के तहत दी गई सूचना के कारण ऐसी स्थिति कभी नहीं आई। यहां तक कि आरटीआइ के कारण जान को खतरे को लेकर किसी भी अधिकारी ने अभी तक पुलिस में शिकायत तक नहीं दर्ज कराई है।