कुरुक्षेत्र जिले के थानेसर खंड के प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों में रेडक्रास द्वारा भेजे गए फर्स्ट एड बॉक्सों में एक्सपायरी डेट दवाएं मिलना विभागीय स्तर पर गंभीर लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण है। इसे आपराधिक चूक की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। क्या शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग और रेडक्रास में सब कुछ आंख बंद करके भगवान भरोसे ही चल रहा है। ग्रामीण इलाकों में तो प्रशिक्षित चिकित्सकों तक की कमी रहती है, ऐसे में दवाओं के रिएक्शन पर क्या झोलाछाप डॉक्टर के हवाले छोड़ दिया जाएगा जीवन। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी गिने-चुने हैं। नजदीक के किसी शहर या उपमंडल के सरकारी अस्पताल में मरीज को ले जाते यदि कोई अनहोनी हो गई तो उसकी जिम्मेदारी किस पर रहेगी? प्राथमिक, माध्यमिक स्कूल के हेडमास्टर, जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी पर या परोक्ष रूप से जिला उपायुक्त पर? थानेसर प्रकरण में तह तक जाकर पक्का समाधान न ढूंढ़ा गया या दोषियों पर उचित कार्रवाई न की गई तो इसकी पुनरावृत्ति क्या किसी अन्य जगह दिखाई नहीं देगी? विडंबना देखिये कि फर्स्ट एड बॉक्स के लिए 828 रुपये वसूल कर भी घातक कूड़ा थमा दिया गया। मामले में तनिक भ्रष्टाचार की बू भी महसूस की जा रही है। लगता है सिर्फ परचेजिंग को ही एक मात्र लक्ष्य मान लिया गया। सरकारी ग्रांट को एडजस्ट करते समय क्या उपयोगिता, प्रासंगिकता और व्यावहारिकता के मापदंडों को नहीं परखा जाता? प्राथमिकता पर जब एडजस्टमेंट हावी हो जाए तब मानक गौण हो जाते हैं। कुछ माह पूर्व आयरन की गोलियां खाने से चार शहरों में स्कूली बच्चे बड़ी संख्या में बीमार हो गए थे। अफरातफरी मचने पर स्वास्थ्य विभाग जागा, आनन-फानन में कार्रवाई हुई। जांच शुरू होकर हांफती हुई कुछ कदम चली और फिर फाइल बंद हो गई। स्वास्थ्य विभाग के नियमों के अनुसार चिकित्सक से परामर्श बिना दवा नहीं दी जा सकती। कैमिस्टों को भी हिदायत है कि मामूली दर्द निवारक दवा भी डॉक्टर की पर्ची बिना न बेची जाए। साइड इफेक्ट जांचने के लिए मेडिकल टेस्ट कराए जाते हैं। जरूरी नहीं कि हर दवा हर मरीज को माफिक आए। ऐसे में बिना जांच के दवा और वह भी एक्सपायरी डेट। आसानी से महसूस किया जा सकता है कि मासूमों के स्वास्थ्य के साथ कितना बड़ा प्रयोग होने जा रहा था।