Friday, 1 April 2011

कई स्कूलों में प्रवेश नहीं कर सका शिक्षा का अधिकार

रामनारायण श्रीवास्तव, नई दिल्ली देश भर में मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून को लागू हुए एक साल तो पूरा हो गया है, लेकिन यह अभी तक यह तमाम राज्यों के स्कूलों प्रवेश भी नहीं पा सका है। हालत यह है कि अधिकांश स्कूलों में शिक्षकों को इस कानून के नाम से आगे पता ही नहीं है। इस कानून की निगरानी करने वाले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने राज्यों के रवैये पर निराशा जाहिर की है। इस कानून को लागू करने में कई तरह की व्यवस्थागत दिक्कते सामने आ रही हैं और इसे अभी तक छह राज्यों व सभी केंद्र शासित प्रदेशों में ही लागू किया जा सका है। देश में बड़ी तामझाम के साथ शुरू किया गया बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून अपने पहले साल में उम्मीदों को पूरा करता नजर नहीं आ रहा है। शिक्षकों की भारी कमी के चलते सवाल तो पहले से ही खड़े हो रहे हैं ऊपर से इस कानून के प्रावधानों को पूरा करने के लिए आधारभूत ढांचा तक नहीं है। कानून की निगरानी का दायित्व संभाल रहे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को इसकी पहली समीक्षा तीन साल बाद करनी है, लेकिन उसे पहले एक साल के अपने आकलन में निराशाजनक तस्वीर हाथ लगी है, हालांकि उसे जल्द ही हालात सुधरने की उम्मीद है। इसकी निगरानी के लिए गठित किए गए शिक्षा का अधिकार विभाग की राष्ट्रीय समन्वयक किरण भट्टी का मानना है कि पहले साल में उन्होंने वरीयताएं तय की है। इस दौरान काफी चीजें सीखी हैं। इसके अलावा क्रियान्वयन को निगरानी से अलग किया गया है। उन्होंने कहा कि आम लोगों की बात तो दूर तमाम शिक्षक तक इस कानून के पहलुओं से वाकिफ नहीं है। इसके लिए उन्होंने स्कूलों के बाहर दीवारों पर कानून के बारे में जानकारी लिखने का सुझाव दिया है, ताकि लोग जान तो सकें। इसके लिए ग्राम सभा की विशेष बैठकें भी की जाएं। आयोग की विशेषज्ञ समूह के सदस्य विनोद रैना के मुताबिक बीते एक साल में अकेले दिल्ली से ही 11 हजार शिकायतें मिली है। उन्होंने इस बारे में राज्यों की स्थिति व कानूनी प्रावधानों में अंतर पर भी सवाल खड़े किए। इस कानून को अभी तक पूरी तरह से आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्कम व केंद्र शासित प्रदेशों में ही लागू किया गया है
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