भिवानी, 18 मार्च (हप्र)। सुप्रीम कोर्ट व पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा शिक्षा विभाग में सात वर्षो से कार्यरत अतिथि अध्यापकों को 31 मार्च को पदमुक्त करने के आदेश से जहां गेस्ट टीचरों की धड़कनें तेज हो गई वहीं उनके खिलाफ लंबे समय से जनआंदोलन चला रहे पात्र अध्यापकों का हौसला बढ़ गया है।
पात्र अध्यापक संघ ने प्रदेश सरकार से इस फैसले को लागू करवाने के लिए अतिथि अध्यापकों के खिलाफ खुलेआम संघर्ष का रुख अख्तियार कर लिया है। संघ ने प्रदेश सरकार इनके हटने पर रिक्त होने वाले पदों पर स्वयं शिक्षण कार्य करने की मांग करते हुए मुफ्त में पढ़ाने की पेशकश की है। इसी अभियान में प्रदेश के साठ हजार पात्र अध्यापक शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल व शिक्षा महानिदेशक सुरीना राजन को हलफिया देने की घोषणा की है।
जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार ने राजकीय विद्यालयों में भाषा सहित अन्य शिक्षकों के रिक्त पदों पर वर्ष 2005-2006 में मात्र एक सत्र के लिए दिल्ली व राजस्थान की तर्ज पर डिग्रीधारी शिक्षकों की भर्ती की थी लेकिन बाद में वे सरकार पर दबाव बनाते चल गए और सरकार भी उनको पदमुक्त कर उनके स्थान पर नई भर्ती नहीं कर पाई है जिससे तीन बार एक ही विषयों में पात्रता उत्तीर्ण कर चुके पात्रता धारकों में प्रदेश सरकार की लचर प्रणाली से रोष बना हुआ है। पात्र अध्यापक संघ ने दो वर्ष पूर्व ही हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अतिथि अध्यापकों की भर्ती में बरती गई अनिमियतताओं व सरकारी स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर पर रोक लगाने की मांग की। संघ ने कोर्ट से तुरंत प्रभाव से अतिथि अध्यापकों को हटा कर नियमित भर्ती की मांग की तो प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग के वित्तायुक्त ने प्रशासनिक अड़चनों का हवाला दे कर जल्द समय में भर्ती करने पर असमर्थता जताई।
शिक्षा विभाग ने हाईकोर्ट में बरती गई धांधली की राजपत्रित अधिकारियों की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर जांच करने व नई भर्ती करने के लिए लिए 31 मार्च 2012 तक का समय मांगा। 31 मार्च 2011 को चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने शिक्षा विभाग के पूरे शैड्यूल सहित जारी हल्फनामे पर भरोसा करते हुए उनको 31 मार्च 2012 तक एक वर्ष का समयावधि देने का निर्णय लिया था। प्रदेश सरकार ने समयावधि मिलते ही फिर से वहीं ढीलापन दिखाया और पहले तो छह माह तक सारे प्रकरण पर भी चुपी साधे रखी और फिर ज्योंही समय नजदीक आया तो शिक्षक भर्ती के लिए एक अलग बोर्ड का गठन की कार्यवाही शुरु कर दी। प्रदेश में तीन बार पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण कर शिक्षक बनने का सपना लेने वाले पात्र अध्यापकों को उस समय करारा झटका लगा जब प्रदेश सरकार ने 31 मार्च 2012 को अतिथि अध्यापकों को पदमुक्त करने के बजाए दोबारा कोर्ट को हल्फनामा देकर वर्तमान समय में शिक्षकों के पदों पर नियमित भर्ती न करने की बात कह कर 30 सितंबर तक और समय देने की मांग की जिस पर प्रदेश भी के पात्र अध्यापकों ने 5 फरवरी को सभी आयुक्त कार्यालयों पर बड़ी रैलियां कर सरकार के सामने नई मुश्किलें पैदा कर दी।
हरियाणा पात्र अध्यापक संघ प्रदेशाध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा हाईकोर्ट के निर्णय के अनुसार समय पर स्थाई भर्ती न करके कोर्ट की अवमानना के साथ-साथ पात्र शिक्षकों के साथ अन्याय किया है। प्रदेश सरकार पहले तो पात्रता परीक्षा लेने से पीछे हट रही थी तो उनके आंदोलनों के चलते दबाव आया तो जानबूझ कर पात्रता परीक्षा व परिणाम जारी करने में लापरवाही बरती गई।
उन्होंने बताया कि अगर प्रदेश सरकार 31 मार्च को इनको नहीं हटाती है तो लाखों पात्रता धारक इस अवमानना के मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाऐंगे।
पात्र अध्यापक संघ ने प्रदेश सरकार से इस फैसले को लागू करवाने के लिए अतिथि अध्यापकों के खिलाफ खुलेआम संघर्ष का रुख अख्तियार कर लिया है। संघ ने प्रदेश सरकार इनके हटने पर रिक्त होने वाले पदों पर स्वयं शिक्षण कार्य करने की मांग करते हुए मुफ्त में पढ़ाने की पेशकश की है। इसी अभियान में प्रदेश के साठ हजार पात्र अध्यापक शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल व शिक्षा महानिदेशक सुरीना राजन को हलफिया देने की घोषणा की है।
जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार ने राजकीय विद्यालयों में भाषा सहित अन्य शिक्षकों के रिक्त पदों पर वर्ष 2005-2006 में मात्र एक सत्र के लिए दिल्ली व राजस्थान की तर्ज पर डिग्रीधारी शिक्षकों की भर्ती की थी लेकिन बाद में वे सरकार पर दबाव बनाते चल गए और सरकार भी उनको पदमुक्त कर उनके स्थान पर नई भर्ती नहीं कर पाई है जिससे तीन बार एक ही विषयों में पात्रता उत्तीर्ण कर चुके पात्रता धारकों में प्रदेश सरकार की लचर प्रणाली से रोष बना हुआ है। पात्र अध्यापक संघ ने दो वर्ष पूर्व ही हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अतिथि अध्यापकों की भर्ती में बरती गई अनिमियतताओं व सरकारी स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर पर रोक लगाने की मांग की। संघ ने कोर्ट से तुरंत प्रभाव से अतिथि अध्यापकों को हटा कर नियमित भर्ती की मांग की तो प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग के वित्तायुक्त ने प्रशासनिक अड़चनों का हवाला दे कर जल्द समय में भर्ती करने पर असमर्थता जताई।
शिक्षा विभाग ने हाईकोर्ट में बरती गई धांधली की राजपत्रित अधिकारियों की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर जांच करने व नई भर्ती करने के लिए लिए 31 मार्च 2012 तक का समय मांगा। 31 मार्च 2011 को चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने शिक्षा विभाग के पूरे शैड्यूल सहित जारी हल्फनामे पर भरोसा करते हुए उनको 31 मार्च 2012 तक एक वर्ष का समयावधि देने का निर्णय लिया था। प्रदेश सरकार ने समयावधि मिलते ही फिर से वहीं ढीलापन दिखाया और पहले तो छह माह तक सारे प्रकरण पर भी चुपी साधे रखी और फिर ज्योंही समय नजदीक आया तो शिक्षक भर्ती के लिए एक अलग बोर्ड का गठन की कार्यवाही शुरु कर दी। प्रदेश में तीन बार पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण कर शिक्षक बनने का सपना लेने वाले पात्र अध्यापकों को उस समय करारा झटका लगा जब प्रदेश सरकार ने 31 मार्च 2012 को अतिथि अध्यापकों को पदमुक्त करने के बजाए दोबारा कोर्ट को हल्फनामा देकर वर्तमान समय में शिक्षकों के पदों पर नियमित भर्ती न करने की बात कह कर 30 सितंबर तक और समय देने की मांग की जिस पर प्रदेश भी के पात्र अध्यापकों ने 5 फरवरी को सभी आयुक्त कार्यालयों पर बड़ी रैलियां कर सरकार के सामने नई मुश्किलें पैदा कर दी।
हरियाणा पात्र अध्यापक संघ प्रदेशाध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा हाईकोर्ट के निर्णय के अनुसार समय पर स्थाई भर्ती न करके कोर्ट की अवमानना के साथ-साथ पात्र शिक्षकों के साथ अन्याय किया है। प्रदेश सरकार पहले तो पात्रता परीक्षा लेने से पीछे हट रही थी तो उनके आंदोलनों के चलते दबाव आया तो जानबूझ कर पात्रता परीक्षा व परिणाम जारी करने में लापरवाही बरती गई।
उन्होंने बताया कि अगर प्रदेश सरकार 31 मार्च को इनको नहीं हटाती है तो लाखों पात्रता धारक इस अवमानना के मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाऐंगे।