सुधीर आर्य, फतेहाबाद ट्यूबवेल से निकलने वाला पानी खेतों की तो सिंचाई कर सकता है लेकिन उससे नहर या नदी नहीं निकाली जा सकती। शिक्षा की गंगा तो कतई नहीं, लेकिन इस असंभव प्रतीत हो रहे कार्य को संभव कर दिखाया है विश्वनाथ मुंजाल ने। करीब 36 वर्ष पहले इन्होंने नशा मुक्ति की लड़ाई छेड़ी लेकिन शिक्षा के बिना इस बुराई को छोड़ने के लिए लोगों को समझाना बड़ा कठिन हो गया। यह समस्या देखकर उन्होंने लोगों को शिक्षित करने का जिम्मा उठाया लेकिन न तो निजी स्कूल था और न ही सरकार स्कूल खोल रही थी। जब इन्होंने इसकी शुरुआत की तो लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे थे। बावजूद इसके इन्होंने हार नहीं मानी। इन्होंने जब अपने खेत के ट्यूबवेल पर पानी भरने के लिए उमड़ने वाले ग्रामीणों को देखा तो यहीं पर स्कूल खोल दिया। फिर क्या था, बच्चों को पढ़ता देख पूरे गांव में शिक्षा की अलग जग गई और यह ट्यूबवेल वाला स्कूल आज सरकारी स्कूल बन गया और विश्वनाथ जी ने शिक्षा के भागीरथ बनकर ट्यूबवेल से शिक्षा की गंगा निकाल दी। वर्ष 1975 में खेत के ट्यूबवेल से शुरू हुई यह पाठशाला वर्ष 1992 तक चली। इसके बाद शहर के प्रतिष्ठित लोगों ने जगह दी और चंदे से बनी इमारत अब सरकारी स्कूल है। वे बताते हैं कि तब शिक्षा के लिए अधिक प्रयास नहीं हो रहे थे और उनकी पाठशाला में 15-20 बच्चों का एक समूह बना दिया जाता था, जिन्हें एक-एक युवा पढ़ाता। वर्ष 1992 के बाद सरकारी स्कूल बनाए जाने के लिए प्रयास हुए। दान में जमीन ली और चंदे से इमारत बना कर सरकार को सौंप दी गई। उन्हें बच्चों को पढ़ाना इतना रास आया कि शहर के दूसरे हिस्से में बसी कालोनी में एक और स्कूल खोल लिया। न जाने क्या रहा कि कुछ साथी मिल गए और टेंट हाउस से टेंट उठा कर हंस कालोनी पहुंच गए और खुले में ही पाठशाला खोल दी गई। सेवा भाव से दो अध्यापिकाओं ने यहां पढ़ाना शुरू कर दिया और अब यहां सेवा भारती संस्था एक भव्य स्कूल चला रही है। 72 वर्षीय विश्र्वनाथ मुंजाल को शहरवासी साइकिल वाले बाबूजी के नाम से ही जानते हैं। वजह है कि वह हमेशा साइकिल पर ही चले हैं। सेवा भारती में शाखा प्रभारी बने विश्र्वनाथ मुंजाल का परिवार पाकिस्तान के घमंडपुर क्षेत्र से करनपुर आकर बस गया। पिता घमंडी लाल 1951 में पहली बार हुए चुनाव में राजस्थान की करनपुर सीट से विधायक बने। विश्र्वनाथ मुंजाल का कहना है कि अक्षर ज्ञान मिल गया तो समझो जीवन की हर खुशी मिल गई।