Monday 23 January 2012

21वीं सदी में 21 बार एमए करने की हसरत अब तक उर्दू, संगीत व प्राचीन तथा आधुनिक इतिहास सहित हासिल कर चुके हैं एमए की 16 डिग्री लक्ष्य

मोहन भारद्वाज, हिसार कई बार किसी की छोटी सी टिप्पणी जीवन को मकसद दे देती है और जब यह मकसद पढ़ाई का हो तो लक्ष्य तय करना मुमकिन है। मनोविज्ञान विषय से अपनी 17वीं एमए (स्नातकोत्तर) कर रहे कश्मीर सिंह ने 21वीं सदी में 21 एमए करके गिनिज बुक आफ व‌र्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवाने का लक्ष्य बना लिया है। शांति नगर में रहने वाले कश्मीर सिंह के मुताबिक 1969 की बात है। रतिया के नागपुर में जेबीटी शिक्षक के पद पर नियुक्ति के दौरान एक साथी ने उनकी शिक्षा पर टिप्पणी कर दी थी। बस उन्होंने ठान लिया। अब तक वे 16 एमए पास कर चुके हैं और अब सेवानिवृत्ति के बाद भी 17वीं की शिक्षा जारी है। उन्होंने बताया कि उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, उर्दू, संगीत, अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र, धर्म शास्त्र, लोक प्रशासन, आधुनिक इतिहास, प्राचीन इतिहास, शिक्षा, जन संचार विषय में एमए पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़, कुवि, मेरठ, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला, सीडीएलयू सिरसा तथा गुजविप्रौवि से की है। उनकी हसरत एमए की संख्या 21 तक पहंुचाकर लिम्का बुक में नाम दर्ज कराना है। कायदा पढ़कर हो गए उर्दू से एमए : डॉ. कश्मीर चंद बताते हैं कि उन्होंने कायदा पढ़कर उर्दू से एमए पास की। इससे उन्हें उर्दू की एमए सबसे आसान लगी। अर्थशास्त्र की एमए सबसे मुश्किल लगी। इस सफर में कई बार पत्नी तोशी देवी की टिप्पणी तो सुनने को मिली, परंतु इसके साथ वह हर वक्त उनके साथ भी खड़ी नजर आई। कश्मीर चंद का सफरनामा : अप्रैल 1951 में मिंगनीखेड़ा गांव में जन्मे कश्मीर सिंह को जेबीटी करने के बाद उन्हें अक्टूबर 1969 में नागपुर स्कूल में जेबीटी शिक्षक के पद पर नियुक्ति मिली। 1971 में उन्हें टोहाना के स्कूल में हिंदी टीचर के पद पर नियुक्ति मिली तथा 1972 में नियमित हो गए। जनवरी 1990 में मात्रश्याम में एसएस टीचर पर पदोन्नति मिली तथा इसी वर्ष मार्च में शीशवाल गांव में संस्कृत लेक्चरर बन गए। 2002 में बुड़ाक स्कूल का मुख्याध्यापक नियुक्त किया गया। 2007 में जमावड़ी स्कूल का प्राचार्य बनाया गया तथा यहीं से 2009 में सेवानिवृत मिल गई। इसके बाद भी वे एक निजी कालेज में उपप्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।
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