नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो : सुप्रीम कोर्ट ने विरोध प्रदर्शनों के दौरान रेल और रास्ता रोकने की प्रवृत्ति और इसे रोकने के लिए सरकार की ओर से पुख्ता इंतजाम न किए जाने पर गहरी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने मंगलवार को संकेत दिया कि सरकार न सख्त हुई तो वह ऐसे लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालतें गठित करने का आदेश दे सकता है। इतना ही नहीं शीर्ष अदालत ने ऐसे अभियानों में नेताओं के भी शामिल होने की आलोचना की है। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने हरियाणा के मिर्चपुर में दलितों पर हमले के मामले में सुनवाई के दौरान ये बातें कही। इससे पहले पीठ ने इस मामले में सुनवाई का दायरा बढ़ा दिया था और विरोध प्रदर्शनों के दौरान रास्ता और रेल रोकने से सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान और आमजनता को होने वाली असुविधा को भी शामिल कर लिया था। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से ऐसी घटनाएं रोकने के लिए सुझाव मांगे थे। मंगलवार को केंद्र सरकार ने सुझाव देने के लिए कोर्ट से कुछ और समय मांगा। पीठ ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या सरकार वास्तव में इसे रोकने के लिए गंभीर है। अदालत जानना चाहती है कि इस गुंडागर्दी से यात्रियों को बचाने के लिए कितने पुलिसकर्मी तैनात किए गए। कोर्ट ने कहा कि हैदराबाद में एक दिन के विरोध प्रदर्शन में 184 बसें जला दी गई। हमारे देश में लोगों में असीमित सहनशीलता है। पीठ ने सुझाव देने के लिए केंद्र सरकार को तीन सप्ताह का समय और दे दिया। लेकिन कहा कि अगर सरकार कुछ नही करेगी तो वे करेंगे। क्योंकि वे (न्यायपालिका) भी राज्य का तीसरा अंग है। वैसे यह काम सरकार का है। कोर्ट ने कहा कि कुछ महीने पहले दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान जाम लगा था। वकील अदालत नहीं पहंुच पाए और सुनवाई स्थगित हुईं। इससे गरीब लोग प्रभावित होते हैं। कोर्ट ने कहा कि कभी न कभी हम सब इसके शिकार होते हैं। केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील वसीम अहमद कादरी ने कहा कि सरकार भी ऐसी घटनाओं का समर्थन नहीं करती। कोर्ट ने सरकार से कहा कि वे रास्ता और रेल रोकने वालों पर मुकदमा चलाने और उनके मुकदमें का तीन महीने में निस्तारण का आदेश देने के बारे में विचार कर रहे हैं।