Thursday, 10 November 2011

भर्तियों पर ब्रेक

तेहरवें वित्त आयोग की नई भर्तियां न करने की सिफारिश से उत्तराखंड में बेरोजगारों के सपनों पर तो तुषारापात हुआ ही है, सरकार के लिए भी असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। आयोग का सुझाव है कि विशेष परिस्थितियों में मात्र एक फीसदी से ज्यादा रिक्रूटमेंट करना सही नहीं होगा। इससे भी आगे ज्यादातर कामकाज आउटसोर्सिग और पीपीपी मोड में कराने पर जोर दिया गया है। निश्चित ही ऐसे राज्य में जहां पलायन एक बड़ी समस्या बन चुका हो, वित्त आयोग की सिफारिश से मायूसी फैलनी स्वाभाविक है। दरअसल, इस परिस्थिति के लिए स्वयं सरकार ही जिम्मेदार है। राज्य बने 11 साल बीत गए लेकिन हालात में कोई परिवर्तन नहीं आया। शिशु राज्य की पीठ पर कर्जे का इतना बोझ है कि उसकी कमर दोहरी हो चुकी है। सरकार बामुश्किल कर्मचारियों को वेतन दे पा रही है। सरकार के खर्चे सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते जा रहे हैं। बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। हकीकत यह है कि अब तक सरकारें प्रदेश के भविष्य की बजाए अपना तात्कालिक लाभ ही साधती रहीं। रोजगार सृजन के लिए कभी भी कोई ठोस नीति नजर नहीं आई। उत्तराखंड आने वाले उद्योगों ने छूट का लाभ उठाया, लेकिन राज्य के युवाओं के खाली हाथों को काम का अभाव हमेशा बना रहा। नतीजतन, लोग बाहरी राज्यों का रुख कर रहे हैं।दूसरी ओर यदि आयोग की सिफारिश के मुताबिक आउटसोर्सिग और पीपीपी मोड के जरिए सरकारी कामकाज कराया जाता है तो भी प्रदेश का युवा अपने आपको सुरक्षित नहीं पाता। दरअसल, जर्जर हालात से जूझता राज्य अब शिद्दत से वित्तीय अनुशासन की जरूरत महसूस कर रहा है।
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