Tuesday, 15 November 2011

शिक्षा का हक

हरियाणा के शैक्षिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से सर्वाधिक पिछड़े मेवात के लिए इस बार का शिक्षा दिवस वास्तव में वरदान लेकर आया है। शिक्षा का हक अभियान की शुरुआत मेवात से हुई तो स्वाभाविक रूप से प्रदेश में इसको लेकर ज्यादा उत्साह दिखा। यह दूसरी बात है कि प्रदेश में यह पहले से लागू है। पिछले छह माह के दौरान मेवात किसी राष्ट्रीय अभियान का दूसरी बार साक्षी और सारथी बना, जो गर्व की अनुभूति कराने वाला है। इतने विराट अभियानों के आगाज का श्रेय मिलने के साथ हरियाणा की जिम्मेदारियां भी उतनी ही बढ़ गई हैं। यह स्वीकार करने में हिचक नहीं होनी चाहिए कि संचार क्रांति, बेहतर प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता दर में वृद्धि एवं सरकारी प्रचार तंत्र के वृहद अभियान के बावजूद हरियाणा में शिक्षा अधिकार कानून के बारे में अभी अधिक जागरूकता पैदा नहीं हो सकी। खासतौर पर ग्रामीण परिवेश तो इससे लगभग अछूता है। कन्या शिक्षा पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। 90 फीसद से अधिक ग्रामीण परिवारों में आज भी लड़की की शिक्षा से अधिक उसके विवाह को प्राथमिकता दी जा रही है। मिड डे मील योजना का प्रयोजन जितना महान है, पालन में ठीक इसके विपरीत हो रहा है। ड्राप आउट में कुछ कमी सिर्फ इसीलिए दिखाई दे रही है कि बच्चे सिर्फ भोजन के लिए स्कूल आ रहे हैं, शिक्षा या साक्षरता का मूल लक्ष्य कहीं पीछे छूट रहा लगता है। जागरूकता अभियान से हर उस व्यक्ति, संस्था व समूह को जोड़ा जाए जो शिक्षा की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अध्यापक, अभिभावक, पंच, सरपंच, गैर सरकारी संगठन, सेवानिवृत्त शिक्षाविद, स्वयं सहायता समूह, स्कूल प्रबंधन समिति, साक्षरता क्लब, निजी स्कूल संचालक, ग्राम सभा, युवा, सामाजिक, सांस्कृतिक क्लब, एनजीओ तथा विभिन्न विभागों के अधिकारियों, कर्मचारियों को शिक्षा विभाग अपने अभियान में पूरी तत्परता, जवाबदेही व ईमानदारी से शामिल करे तो सफलता में किसी संदेह की गुंजाइश नहीं रहेगी। प्रधानमंत्री के संदेश और मुख्यमंत्री की प्रतिबद्धता का मार्ग गांवों की पगडंडियों और स्लम बस्तियों से होकर ही गुजरेगा। सबसे पहले तो उन बच्चों को वापस स्कूल लाना होगा जो धनाभाव के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुके हैं।
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