बालेंदु शर्मा दाधीच
मानव संसाधन व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने कुछ महीने पहले जब दुनिया का सबसे सस्ता टैबलेट कंप्यूटर विकसित किए जाने की घोषणा की तो बाकी दुनिया की को छोडि़ए खुद भारत में भी इसे कोई खास तवज्जो नहीं दिया गया। मीडिया, तकनीक विशेषज्ञों, ब्लॉगरों समेत आम लोगों को भी इस पर यकीन नहीं हुआ कि महज 500 रुपये में भारत में कोई लैपटॉप विकसित किया जा सकता है और इसे बेचा जा सकता है। सबने सरकार की नासमझी पर अफसोस जताया और संभावित टैबलेट की क्षमताओं पर कई गंभीर सवाल उठाए। ऐसी धारणा पैदा की गई जैसे सरकार कंप्यूटर के नाम पर लॉलीपॉप थमाने जा रही है। दरअसल सामान्य समझ के मुताबिक यह संभव ही नहीं हो सकता था। पश्चिमी देशों में 100 डॉलर के बजट में बच्चों को लैपटॉप मुहैया कराने हेतु एक लैपटॉप प्रति बालक योजना के तहत यूएनडीपी और दूसरे संगठनों ने दिल खोलकर मदद दी है। बावजूद इसके उनके सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। ऐसे में भारत जैसा देश जो बिना किसी बड़ी आर्थिक मदद के सिर्फ पांच सौ रुपये यानी करीब दस डॉलर में यदि ऐसा कारनामा कर दिखाए तो उस पर यकीन कर पाना संभव ही नहीं था, लेकिन भारतीय उद्यमिता और मेधा ने इस असंभव को संभव कर दिखाया। पांच सौ न सही, लेकिन 1700 रुपये में हमने दुनिया का सबसे सस्ता टैबलेट कंप्यूटर बनाने में अंतत: सफलता हासिल कर ही ली। आने वाले समय में यह असंभव नहीं कि जब बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगे तो इस इसके दाम पांच सौ रुपये पर आ जाएं। महत्वाकांक्षी परियोजना भले ही हम दुनिया में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी माने जाते हैं, लेकिन दो दशक के बावजूद हमने अभी तक इस क्षेत्र की अथाह संभावनाओं का एक छोटा सा रास्ता ही तय किया है। अगर हमें अपनी तकनीकी मेधा के बल पर देश के सुखद आर्थिक भविष्य की इमारत खड़ी करनी है तो देश के कोने-कोने में सूचना प्रौद्योगिकी के हक में एक रचनात्मक व शैक्षिक आंदोलन शुरू करने की जरूरत है। गांव-गांव और शहर-शहर में आइटी का प्रसार करना है कंप्यूटर, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि तकनीकों से लैस युवकों की विशाल जनसंख्या खड़ी करनी है। आज के हालात में यह संभव नहीं है। यह सही है कि हमारा आइटी बाजार 78 अरब डॉलर का हो चुका है, लेकिन देश में कंप्यूटर साक्षरता अभी भी बेहद कम है। शायद दिया तले अंधेरा इसी का नाम है। भारत सरकार की तरफ से लांच किया जाने वाला यह छोटा सा टैबलेट जिसमें स्क्रीन आधारित कीबोर्ड इस्तेमाल होता है उस लिहाज से बड़ी उम्मीद जगाता है। सत्रह सौ का यह टैबलेट बुनियादी रूप से शिक्षा के क्षेत्र में इस्तेमाल होगा और हमारे बच्चों को इसके तकनीकी अवधारणाओं के करीब लाएगा। देश में प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा 40 हजार रुपये वार्षिक से ऊपर पहुंच चुका है इसलिए सामान्य नागरिक यह खर्चा उठाने में सक्षम माना जा सकता है। इसके अलावा सरकार 50 फीसदी सब्सिडी भी दे रही है जो सोने में सुहागा की तरह है। पिछले सात साल से इस परियोजना पर काम चल रहा था। एक दशक पहले हमारे यहां एक और देसी कंप्यूटर सिम्प्यूटर के चर्चे हुआ करते थे। वह भी एक महत्वाकांक्षी परियोजना थी हालांकि तब फोकस शिक्षा पर उतना नहीं था। एक समय आम लोगों के हाथ में एक सस्ती, सीधी-सादी कंप्यूटिंग डिवाइस सपना था। इसलिए नाम भी उसी के अनुकूल था- सिम्प्यूटर यानी सिंपल कंप्यूटर। बहुत सालों के अनुसंधान और विकास के बाद आखिरकार 2004 में सिम्प्यूटर देखने को मिला तो सबको निराशा हुई। यह किसी गेमिंग गैजेट जैसी चार बटन वाली हैंडहेल्ड डिवाइस थी जिसे एक स्टाइलिस स्टिक के साथ पेश किया गया था। यदि सिम्प्यूटर के निर्माताओं को आर्थिक सहयोग मिला होता तो सात साल की इस अवधि में वह उसे काफी आगे बढ़ा चुके होते। हालात और कारण जो भी रहे हों करोड़ों हिंदुस्तानियों की तकनीकी उम्मीदें धूमिल करते हुए सिम्प्यूटर न जाने कहां खो गया। बहरहाल एक दूसरे जरिए से ही सही सरकारी तथा निजी भागीदारी में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की मदद से भारत का अपना टैबलेट कंप्यूटर तैयार है। तकनीक में श्रेष्ठता जहां तक कन्फीगरेशन का सवाल है तो यह आश्चर्यजनक रूप से ठीक-ठाक दिखाई देता है। दो गीगाबाइट रैम, 32 जीबी हार्डडिस्क, वाइफाइ सिस्टम, यूएसबी पोर्ट, ऑनस्क्रीन की-बोर्ड, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा, मल्टीमीडिया क्षमता और इंटरनेट कनेक्टिविटी से लैस यह डिवाइस महज दिखावटी चीज नहीं है। हार्डडिस्क की क्षमता जरूर कम है, लेकिन यूएसबी पोर्ट के जरिये अलग से बड़ी हार्डडिस्क लगाकर ौसे बढ़ाया जा सकता है। वीडियो कॉन्फेंसिंग एक अहम फीचर है जो बच्चो को सामूहिक रूप से इंटरनेट के जरिये शिक्षा देना संभव बनाएगा। हालांकि यह नि:शुल्क उपलब्ध लाइनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम पर आधारित है फिर भी इतने कम दाम में इतनी सारी चीजें समाहित करना कोई आसान काम नहीं है। अगर इस परियोजना के संचालक देश भर से उभरने वाली विशाल मांग को पूरा कर पाते हैं और यह परियोजना जमीनी स्तर पर सही ढंग से लागू की जाती है तो आने वाले वर्षो में कंप्यूटर शिक्षा और साक्षरता दोनों ही मोर्चो पर बड़ी उपलब्धियां अर्जित की जा सकती हैं। हमने एक बड़ी चुनौती फतेह कर ली है, लेकिन खुशी के इस माहौल में यह गलतफहमी नहीं पाली जा सकती कि कंप्यूटर साक्षरता और शैक्षणिक साक्षरता की चुनौतियां अब खत्म होने के करीब हैं। इन मोर्चो पर हमारी समस्याएं और भी हैं। गांवों में बिजली और इंटरनेट ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी के प्रसार की चुनौती बरकरार है। नया टैबलेट सौर ऊर्जा से भी चलाया जा सकता है जो एक बड़ी राहत की बात है, लेकिन वह एक अस्थायी राहत है। कम से कम शैक्षणिक संस्थानों की निर्बाध बिजली सप्लाई सुनिश्चित करने पर ही स्थायी हल निकलेगा। जहां तक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी का सवाल है वह आज भी सिर्फ 6.9 फीसदी भारतीयों को उपलब्ध है। तीन साल में देश की हर ग्राम पंचायत को इंटरनेट से जोड़ने की केंद्रीय परियोजना के लागू होने से हालात जरूर बेहतर होंगे। कंप्यूटर को भारतीय भाषाओं से लैस करना और बच्चों को अपनी मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा देना भी कंप्यूटर साक्षरता के मिशन को सफल बनाने में अहम योगदान दे सकता है, लेकिन दुर्भाग्य से वह सरकार की प्राथमिकताओं में दिखाई नहीं देता। फिर भी इन चुनौतियों का अर्थ यह नहीं है कि दुनिया का सबसे सस्ता टैबलेट कंप्यूटर बनाने की हमारी उपलब्धि का महत्व किसी लिहाज से कम है। इस संदर्भ में एक और पक्ष पर चर्चा करनी जरूरी है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की बढ़त सॉफ्टवेयरों और सेवाओं के मामले में है, हार्डवेयर के मामले में अभी भी हम पिछड़े हुए हैं। एचसीएल और विप्रो को छोड़कर बहुत कम भारतीय कंपनियों ने हार्डवेयर निर्माण में कोई छाप छोड़ी है, लेकिन मैन्यूफैक्चरिंग में दबदबा बनाए बिना हम कभी भी समग्र सूचना प्रौद्योगिकी में बड़ी वैश्विक ताकत नहीं बन सकते। मौजूदा हालात में हम सॉफ्टवेयर और मानव संसाधन संबंधी ताकत ही रहेंगे। मैन्यूफैक्चरिंग में कदम इस समय हमें चीन तथा ब्राजील से लेकर रूस, फिलीपींस, इंडोनेशिया और पाकिस्तान तक से चुनौती मिल रही है। अपने नेतृत्व को स्थायी व सर्वोपरि बनाने के लिए हमें हार्डवेयर मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में कदम बढ़ाने होंगे। अमेरिका, जापान, चीन और ताईवान जैसे देश हार्डवेयर के क्षेत्र में वैश्विक मांग पूरी करने में जुटे हैं। उनकी अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव साफ दिखता है। इस संदर्भ में माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल का उदाहरण सामने है। माइक्रोसॉफ्ट सॉफ्टवेयर क्षेत्र की शक्ति है और लंबे समय से सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की नंबर वन कंपनी बनी रही है, लेकिन अपने हार्डवेयर उत्पादों-आइपॉड, आइफोन और आइपैड की अपार सफलता के बाद एप्पल ने उसे पछाड़ दिया है। दरअसल सॉफ्टवेयर के मामले में आम आदमी की जरूरत सीमित है, जबकि हार्डवेयर का बाजार ज्यादा बड़ा है। इस लिहाज से स्वदेशी टैबलेट कंप्यूटर का निर्माण बहुत महत्वपूर्ण है। यह हमारी क्षमताओं की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। इस कामयाबी के बाद हमें आइटी मैन्यूफैक्चरिंग को असंभव क्षेत्र समझने की जरूरत नहीं है। कम से कम अब सरकार को चाहिए कि वह देसी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर से लैस उत्पादों के विकास और निर्माण को प्रोत्साहित करे। आखिरकार हमारे पास टैबलेट कंप्यूटर के रूप में एक कामयाब उत्पाद फिलहाल मौजूद है। इसने भारतीय इनोवेशन, तकनीकी मेधा और व्यावसायिक प्रतिभा को एक बार फिर दुनिया की नजरों में ला दिया है। हमें चाहिए कि अपने उन सुयोग्य इंजीनियरों, विशेषज्ञों और तकनीशियनों का अभिनंदन करें जिन्होंने इस देश को एक और महत्वपूर्ण मोर्चे पर सफल बनाया है। यह दुनिया पर छा जाने के हमारे राष्ट्रीय संकल्प की अभिव्यक्ति है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)