नई दिल्ली, एजेंसी : उच्चतम न्यायालय ने एक अहम फैसले में व्यवस्था दी है कि विशेष सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अधिग्रहीत भूमि को सरकार या उसकी अनुषंगी इकाइयां न तो बदल सकती हैं और न ही किसी व्यक्ति या औद्योगिक घराने को हस्तांतरित कर सकती हैं। अदालत के इस फैसले के चलते केंद्र को अपने प्रस्तावित भू-अधिग्रहण कानून में बदलाव करना पड़ सकता है, क्योंकि सरकार ने प्रस्तावित विधेयक में अधिग्रहीत जमीन वापस न देने का प्रावधान कर रखा है। कुछ ऐसा ही प्रावधान उत्तर प्रदेश के नए भू-अधिग्रहण कानून में किया है। जस्टिस जीएस सिंघवी और सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि भले ही सरकार को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण की विशेष शक्ति प्राप्त है, लेकिन अधिकारियों के धोखाधड़ी भरे कार्यो को वह वैध नहीं ठहरा सकती। जस्टिस सिंघवी ने कहा कि अदालतों ने बार-बार कहा है कि अपनी विशेष शक्ति का प्रयोग करते समय सरकार लोगों की जमीन का अधिग्रहण कर सकती है, लेकिन निजी लोगों के हितों के लिए जमीन मालिकों को उनकी संपत्ति से बेदखल करने के अवैध कार्यों को यह वैध नहीं ठहरा सकती। च्च्चतम न्यायालय ने औद्योगिक घरानों की अपील को खारिज करते हुए यह आदेश सुनाया। औद्योगिक घरानों ने कर्नाटक च्च्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी जिसने दक्षिण बेंगलूर में 37 एकड़ से ज्यादा जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को रद कर दिया था। कर्नाटक राज्य पर्यटन विकास निगम ने राज्य सरकार के माध्यम से गोल्फ सह होटल रिसार्ट के लिए निजी जमीन का अधिग्रहण किया था। लेकिन रिसार्ट बनाने के बजाए उसने जमीन को हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए एक निजी रीयल इस्टेट कंपनी और अन्य औद्योगिक घरानों को सौंप दिया। इस निर्णय से आहत निजी जमीन मालिकों नच् उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जिसने अधिग्रहण प्रक्रिया को रद करते हुएजमीन मूल मालिकों को लौटाने का निर्देश दिया। औद्योगिक घरानों ने इसके खिलाफच् उच्चतम न्यायालय में अपील की। हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए पीठ ने कहा कि निगम ने राज्य सरकार से यह झूठ बोला कि जमीन की जरूरत पर्यटन से संबंधित परियोजनाओं के लिए है। पीठ ने कहा कि निगम की बैठकों से पता चलता है कि यह जमीन को निजी बिल्डर को सौंपना चाहती था।