कुरुक्षेत्र, सतीश चौहान : वर्ष 2004 में जारी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद पर्यावरण विषय को स्नातक स्तर पर अनिवार्य विषय के रूप में लागू करने में आज तक प्रदेश सरकार उदासीन है। सरकार आज तक कॉलेजों में इस विषय के लिए न तो प्राध्यापकों की नियमित और न ही अनुबंध आधार पर नियुक्त कर पाई। उच्चतर शिक्षा निदेशालय ने एक आरटीआइ के जवाब में माना है कि पर्यावरण विषय के प्राध्यापकों के बारे में न तो कोई बैठक की गई और न ही इस बारे में किसी प्रकार का नोटिफिकेशन जारी किया गया है। दूसरी ओर, ग्रीन अर्थ संस्था की ओर से उच्च न्यायालय में दाखिल जनहित याचिका के जवाब में उच्च शिक्षा निदेशालय हलफनामा देकर कह चुका है कि पर्यावरण विषय के प्राध्यापकों के बारे में प्राथमिकता के आधार पर कार्य किया जा रहा है। संस्था इस मसले में अब सर्वोच्च न्यायालय जाने की तैयारी में है। प्रदेश में इस समय 78 राजकीय महाविद्यालय, 596 निजी और 96 सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालय हैं। ग्रीन अर्थ संस्था ने इस संबंध में वर्ष 2006 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उसके जवाब में प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि उच्च शिक्षा निदेशालय इस संबंध में प्राथमिकता के आधार पर कार्य कर रहा है। पांच वर्ष बाद एक आरटीआइ के जवाब में शिक्षा निदेशालय से मिला जवाब चौंकाने वाला है। संस्था के निदेशक नरेश भारद्वाज ने बताया कि निदेशालय ने न्यायालय में दिए हलफनामे के विपरीत जवाब दिया है। निदेशालय ने आरटीआइ में बताया कि इस संबंध में अभी तक कोई बैठक आयोजित नहीं की गई। मुख्यमंत्री भी कर चुके अनुमोदित : आरटीआइ में बताया गया है कि प्रदेश के राजकीय महाविद्यालयों में 58 पदों को मुख्यमंत्री की ओर से भी 2006 में अनुमोदित किया जा चुका है।