राजीव दीक्षित, लखनऊ शिक्षा अधिकार कानून को अमली जामा पहनाने के लिए केंद्र से मनमाफिक पैसा न मिलने की वजह से यूपी सरकार अब तक जिस नियमावली को लटकाये थी, केंद्र की त्योरियां चढ़ने पर अब उसी को कैबिनेट से मंजूरी दिलाने की मशक्कत की जा रही है। केंद्र द्वारा नये स्कूलों व नि:शुल्क वर्दी के लिए पैसा देने से मना किए जाने पर बेसिक शिक्षा विभाग ने अपनी सक्रियता तेज कर दी है। केंद्र सरकार ने नि:शुल्क एंव अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 को अमली जामा पहनाने के लिए जनवरी 2010 में शिक्षा सचिवों के साथ बैठक कर आदर्श नियमावली जारी की थी कि राज्य चाहें तो इसे अक्षरश: या फिर अपनी जरूरत के अनुसार संशोधन कर अधिसूचित कर दें। शुरुआत में तो राज्य यह कहकर नियमावली अधिसूचित करने से बचती रही कि सूबे में शिक्षा अधिकार को लागू करने का पूरा खर्च केंद्र दे। गत वर्ष केंद्र ने 2014-15 तक के लिए शिक्षा अधिकार पर होने वाले खर्च की हिस्सेदारी 65:35 के अनुपात में तय कर दी। तब राज्य सरकार ने लिखित गारंटी मांगी कि यह अनुपात 2014-15 के बाद भी बरकरार रहेगी। केंद्र सरकार द्वारा इस बाबत ठोस आश्वासन न मिलने पर राज्य सरकार ने नियमावली को अधिसूचित करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। नियमावली को लेकर विभाग की सक्रियता बढ़ी बीती नौ मई को नई दिल्ली में हुई सर्व शिक्षा अभियान के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड बैठक से पहले। सर्व शिक्षा अभियान के तहत 2011-12 के लिए राज्य ने केंद्र को तकरीबन 9200 करोड़ की कार्ययोजना मंजूरी के लिए भेजी थी। इस कार्ययोजना में राज्य में 5000 नये प्राथमिक स्कूलों व 900 उच्च प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना के लिए धनराशि भी मांगी गई थी। कक्षा एक से आठवीं तक की सभी छात्राओं व अनुसूचित जाति/जनजाति और बीपीएल परिवारों के बालकों को साल में दो सेट नि:शुल्क यूनिफॉर्म मुहैया कराने के लिए भी 690 अरब रुपये की जरूरत दर्शायी गई थी। राज्य को केंद्र की ओर से यह संकेत मिल चुका था कि नियमावली को अधिसूचित किये बगैर नये स्कूलों और नि:शुल्क यूनिफॉर्म के लिए धनराशि नहीं स्वीकृत की जाएगी। ऐसी नौबत न आये, इसलिए विभाग ने नौ मई से पहले नियमावली को कैबिनेट से मंजूर कराने के सारे जतन किये लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली। राज्य का अंदेशा सही साबित हुआ और नियमावली न अधिसूचित होने के कारण केंद्र ने नये स्कूलों और नि:शुल्क वर्दी के लिए धनराशि देने से मना कर दिया। शिक्षा अधिकार अधिनियम की जरूरतों के हिसाब से राज्य में तकरीबन 12 हजार प्राथमिक और एक हजार उच्च प्राथमिक विद्यालयों की जरूरत है। भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो,इसलिए विभाग नियमावली को कैबिनेट से मंजूरी दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए हैं।