Tuesday 15 November 2011

काम के मारे भारतीय बेचारे

नई दिल्ली, एजेंसी : ग्लोबल होती दुनिया में बेचारे भारतीय कर्मचारी काम के बोझ में दबे जा रहे हैं। तेज आर्थिक वृद्धि न केवल संपन्नता बल्कि ढेर सारा काम और घरों में तनाव भी साथ लेकर आ रही है। एक सर्वे के नतीजे बतलाते हैं कि पूरी दुनिया के कर्मचारियों के मुकाबले भारतीय ऑफिसों में लोगों के पास ज्यादा काम होता है। आर्थिक वृद्धि के दबाव में वे अपना चैन ओ सुकून और स्वास्थ्य खो रहे हैं। वैश्विक संस्था रेगस द्वारा करवाए गए इस सर्वे में सामने आया कि आधे से भी ज्यादा भारतीय कर्मचारी दिन में आठ घंटे से भी ज्यादा काम करते हैं। इसके अलावा इनमें से कई लोगों के पास काम इतना ज्यादा होता है कि वे उसे घर भी ले जाते हैं। भारत की छोटी कंपनियों में तो हालत और भी बुरे हैं। इन कंपनियों में कर्मचारियों को लगभग 11 घंटे काम करना होता है। सर्वे में साफ कहा गया है कि भारत में 9 से 5 बजे वाली अवधारणा लगभग खत्म हो चुकी है। कर्मचारियों को लगभग रोजाना निर्धारित घंटों से ज्यादा काम करना पड़ रहा है। रेगस के मुताबिक लगभग 40 फीसदी भारतीय कर्मचारी अपने काम को घर में भी करते हैं। रेगस के क्षेत्रीय उप प्रमुख ने कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि पिछले कुछ सालों से बहुत तेज है। भारतीय कंपनियां ढेर सारा काम आउटसोर्स कर रही हैं। इसका असर कर्मचारियों के काम के घंटों और निजी जीवन पर पड़ा है। उन्हें कई-कई घंटों तक काम करना पड़ रहा है। इस तरीके से काम करने से न केवल उनका स्वास्थ्य बल्कि उत्पादकता भी प्रभावित होती है। सर्वे में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर देखें तो 38 फीसदी मजदूरों को आठ घंटे काम करना होता है। वहीं लगभग 10 फीसदी भारतीय कर्मचारी हर रोज 11 घंटे से ज्यादा काम करते हैं। ज्यादा काम करने की वजह से वे तनाव में भी रहते हैं।
;