• अमर उजाला ब्यूरो
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने कई अहम बदलाव करते हुए शुक्रवार को भूमि अधिग्रहण विधेयक का दूसरा संशोधित मसौदा पेश कर दिया। इसके तहत इस कानून का पुनर्वास और पुनर्स्थापना का प्रावधान अब शहरी क्षेत्रों में पचास एकड़ और ग्रामीण क्षेत्रों में सौ एकड़ से अधिक भूमि अधिग्रहण पर लागू होगा। प्रस्तावित कानून पिछली तिथि से प्रभावी होगा। साथ ही इसके तहत भूमि अधिग्रहण से प्रभावित एससी/एसटी वर्ग के किसानों की भूमि लेने पर उन्हें पांच गुना जमीन देनी होगी।
पिछले बीस दिनों में किसान, मजदूर, उद्योग जगत और तमाम मंत्रालयों से मिली राय को शामिल करते हुए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना विधेयक 2011 का संशोधित मसौदा पेश किया गया है। इसमें सरकार ने जनहित की विस्तृत व्याख्या करते हुए अधिग्रहीत की जाने वाली भूमि के लिए भी कायदे कानून बनाए हैं। सरकार का कहना है कि परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण पर ज्यादातर राज्य जनहित शब्द का इस्तेमाल करते हैं। इससे भूमि अधिग्रहण का काम तो आसान हो जाता है। लेकिन किसानों को इसका सर्वाधिक खामियाजा भुगतना पड़ता है। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने बताया कि रेलवे, बंदरगाह, सड़क और बिजली परियोजनाओं के लिए राज्य सरकारें जनहित के तहत भूमि अधिग्रहण कर सकेंगी।
लेकिन यदि इन परियोजनाओं को वे निजी-सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) के तहत बनाने का प्रावधान करती हैं तो उन्हें भूमि अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी किसानों से मंजूरी लेना अनिवार्य होगा।
भूमि अधिग्रहण कानून में किसानों को अधिग्रहीत जमीन के पांच किमी के दायरे में जमीन का प्रावधान किया जा रहा है। साथ ही नए कानून में ऐसी व्यवस्था भी की जाएगी जिसमें पिछले छह वर्षों के दौरान हुए अधिग्रहण के मामले नए कानून के दायरे में स्वत: शामिल हो जाएंगे। इसमें नौकरी न देने पर दो लाख की बजाय अब पांच लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। रमेश ने साफ किया कि पिछली तिथि से कानून लागू होने का का मतलब किसी विशेष तिथि से नहीं है, बल्कि जमीन की स्थिति से है। जैसे 1894 एक्ट के तहत जमीन अधिग्रहण दस्तावेज में दर्ज नहीं हुआ है तो यह नए कानून के तहत आएगा। इसके अलावा यदि जमीन पर कब्जा नहीं लिया गया है तब यह नए कानून के तहत होगा।