Friday 19 August 2011

संविधान से ऊपर नहीं है संसद ,रुल ऑफ लॉ हमारे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा-सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो : इस देश में कानून का राज (रूल ऑफ लॉ) चलता है। ये हमारे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। इसे संसद भी नष्ट या समाप्त नहीं कर सकती, बल्कि वह भी इससे बंधी है। रूल ऑफ लॉ भूमि अधिग्रहण के उन मामलों में भी लागू होता है, जहां कानून को अदालत में चुनौती देने से संवैधानिक छूट मिली है। यह बात सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने संपत्ति पर अधिकार के कानून की व्याख्या करते हुए अपने फैसले में कही है। मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने भूमि अधिग्रहण कानून को चुनौती देने वाली केटी प्लांटेशन प्राइवेट लिमिटेड की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा है कि वैसे तो कानून के शासन यानी रूल ऑफ लॉ की अवधारणा हमारे संविधान में कहीं देखने को नहीं मिलती, फिर भी यह हमारे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। इसे संसद भी नष्ट या समाप्त नहीं कर सकती। बल्कि ये संसद पर बाध्यकारी है। केशवानंद भारती के मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने रूल ऑफ लॉ को संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना है। संविधान पीठ ने कहा है कि एक तरफ तो रूल ऑफ लॉ संसद की सर्वोच्चता निर्धारित करता है। लेकिन दूसरी तरफ संविधान के ऊपर संसद की संप्रभुता को नकारता है। यानी संसद संविधान के ऊपर नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि वैसे तो सैद्धांतिक तौर पर रूल ऑफ लॉ के कोई विशिष्ट चिह्न या भाग नहीं हैं। लेकिन ये कई रूपों में नजर आता है। जैसे प्राकृत न्याय के सिद्धांत का उल्लघंन रूल ऑफ लॉ को कम करके आंकता है। इसी तरह मनमानापन या तर्कसंगत न होना रूल ऑफ लॉ का उल्लंघन हो सकता है। लेकिन ये उल्लंघन किसी कानून को अवैध ठहराने का आधार नहीं हो सकते। इसके लिए रूल ऑफ लॉ का उल्लंघन इतना गंभीर होना चाहिए कि वह संविधान के मूल ढांचे और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करता हो। लोकतांत्रिक समाज में संविधान के हर प्रावधान में एक मूल सिद्धांत शामिल रहता है कि किसी के शांतिपूर्ण कब्जे में सिर्फ कानूनी प्रक्रिया के जरिए ही दखल दिया जा सकता है। कोर्ट ने संपत्ति अधिग्रहण से विदेशी निवेश प्रभावित होने पर चिंता जताते हुए कहा है-विदेशी निवेश के लिए भी यह चिंता का विषय है, विशेष तौर पर उन मामलों में जहां निवेश के बारे में अंतरराष्ट्रीय कानून और संधियां हैं। विदेशी निवेशक जिस देश में निवेश करता है उस पर व उसकी संपत्ति पर उस देश का कानून लागू होता है। साथ में अंतरराष्ट्रीय कानून और समझौते होते हैं।
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