Sunday, 17 July 2011

यूजीसी के फरमान से उड़े होश

अनिल उपाध्याय, देहरादून विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के ताजा फरमान ने संविदा प्रवक्ताओं और सरकार को जहां करारा झटका दिया है, वहीं संविदा पर काम करने के बदले ज्यादा मानदेय की खुशी भी दी है। फरमान के अनुसार पीएचडी के आधार पर जुलाई 2010 के बाद नियुक्ति पाने वालों को एक साल के अंदर नेट क्वालीफाइ करना होगा, यह नियम संविदा प्रवक्ताओं पर भी लागू होगा अन्यथा उनके कांट्रेक्ट आगामी सत्र के लिए नहीं बढ़ाए जा सकेंगे। यह फरमान राज्य सरकार पर भी भारी पड़ेगा। सरकार को अब संविदा प्रवक्ताओं की नियुक्ति नियमित प्रवक्ताओं की तर्ज पर ही करनी होगी और मानदेय भी बराबर देना होगा। उच्च शिक्षा के स्तर में सुधार के उद्देश्य से यूजीसी ने छह जुलाई को देशभर के तमाम कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और राज्य सरकारों को निर्देश जारी किए। राज्य के कई विश्वविद्यालयों को निर्देश प्राप्त भी हो गए हैं। यूजीसी ने शैक्षणिक स्तर को सुधारने और इसमें निरंतरता लाने के लिए प्रवक्ताओं की नियुक्ति के मानकों में फेरबदल किया है। संविदा प्रवक्ताओं की परंपरा को समाप्त करने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। निर्देश में जहां नए मानकों के अनुसार अर्ह संविदा प्रवक्ताओं को खुशी मिली है, वहीं अन्य संविदा प्रवक्ताओं पर गाज गिर सकती है। राज्य सरकारों को भी इन मानकों के पालन के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। इस फरमान से उत्तराखंड के कॉलेजों में तैनात लगभग 500 और विश्वविद्यालयों में तैनात इतने ही संविदा प्रवक्ता प्रभावित होंगे। राज्य में उच्चशिक्षा के 1200 पद सृजित हैं, इनमें से राज्य के कॉलेजों और विवि में लगभग 1000 सविंदा के पद हैं। यूजीसी ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि कुल सृजित पदों के सापेक्ष अधिकतम 10 प्रतिशत पद ही संविदा के हों। ऐसे में राज्य सरकार को सोचना होगा कि लगभग 900 पदों पर नियमित नियुक्तियां कैसे की जाएं।
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