Thursday, 8 December 2011

अंकों का खेल

हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के साथ अजीब संयोग या दुर्योग जुड़ गया लगता है। काम घटने के साथ विवाद लगातार बढ़ रहे हैं। मामला एचटैट परीक्षा केंद्रों के निर्धारण का हो या वार्षिक परीक्षा परिणामों का, सुर्खियों में रहना बोर्ड की प्रकृति में शुमार हो चुका है। वर्ष 2010-11 की मार्च में आयोजित वार्षिक परीक्षा में दसवीं और बारहवीं कक्षाओं के लगभग चार हजार छात्रों के परिणाम बदल दिए गए हैं। इतने व्यापक स्तर पर अनियमितताएं मिलना किसी भी संस्था, विभाग, निकाय, बोर्ड या निगम के लिए वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है। परीक्षा परिणाम में खेल कोटे से खैरात की तरह नंबर बांटे गए। कोई कसौटी, कोई पैमाना, कोई आधार नहीं जांचा गया। लगता तो यही है कि जिसने भी खेल सर्टिफिकेट के नाम पर फर्जी कागज, पर्चा या पुर्जा नत्थी किया, उसे रेवड़ी की तरह नंबर बांट दिए गए। यानी प्रोत्साहन के नाम पर गोरखधंधा वर्षो से चल रहा था। आंख तब खुली जब टॉप टेन में आने वाले शिक्षा बोर्ड में एक कर्मचारी के पुत्र का खेल सर्टिफिकेट फर्जी पाया गया। छात्रों को खेल कोटे के नाम पर 10 अंक देने का सिलसिला किसके आदेश से शुरू किया गया? क्या एक बार भी खेल प्रमाणपत्रों की जांच का दायित्व किसी सक्षम विभाग या अधिकारी को सौंपा गया? विडंबना इस बात की है कि जिला, राज्य या राष्ट्रीय स्तर के किसी खेल प्रमाणपत्र को नौकरी, दाखिले या अन्य किसी लाभ के लिए तब तक आधार नहीं माना जा सकता जब तक संबंधित खिलाड़ी ग्रेडेशन सर्टिफिकेट न बनवाएं लेकिन अकेले शिक्षा बोर्ड में ऐसी कोई बाध्यता नहीं। ऐसा क्यों? पिछले कुछ वर्षो के दौरान हजारों छात्र अंकों की बंदरबांट का फायदा उठा चुके होंगे। अब क्या पिछले वर्षो के खेल प्रमाणपत्रों की भी जांच होगी? यदि हां तो क्या छात्रों के अंक घटाकर नई मार्कशीट भेजी जाएगी? क्या सिर्फ अंक घटाना ही पर्याप्त सजा है? शिक्षा बोर्ड क्या ऐसे छात्रों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए पहल करेगा? दोषी पाए जाने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की प्रकृति क्या होगी? शिक्षा बोर्ड को ऐसे प्रयास सुनिश्ििचत करने होंगे जो उसकी साख को कायम रख सकें।
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