Thursday, 17 November 2011

‘कब जेल, कब बेल’ की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हाई प्रोफाइल मामलों में जमानत खारिज करने के चलन की समीक्षा करने का फैसला किया। जो ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’ सिद्धांत के विपरीत है।

जस्टिस अल्तमश कबीर, जस्टिस एसएस निज्जर और जस्टिस जे. चेलामेश्वर की तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि यह मामला विवादित होने के साथ ही महत्वपूर्ण भी है। इस बारे में जेल में बंद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के सहयोगी अशोक कुमार सिन्हा ने बेंच के समक्ष याचिका दायर की। उनके वकील रणजीत कुमार और मुकुल रोहतगी ने भी बेंच को बताया कि ‘संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार’ के आधार पर दाखिल जमानत याचिकाएं ठुकराई जा रही है। बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 18 जनवरी तक के लिए टाल दी।

वकीलों ने कहा कि आरोपी पिछले दो साल से जेल में हैं। यदि उनका अपराध साबित भी हो जाता है तो कम से कम तीन और अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है। वकीलों ने आरोप लगाया, ‘इन मामलों में ऐसा लगता है कि कोर्ट से पहले मीडिया फैसले सुना रही है। जजों को प्रभावित करने की कोशिश हो रही है। जजों को अपनी गोपनीय रिपोर्टों का डर है।’ कुमार ने कहा, ‘आरोपियों की जमानत याचिका ठुकराने से गंभीर मुद्दा खड़ा हुआ है। ऐसे समय में शीर्ष कोर्ट की तीन सदस्यीय जजों की बेंच कम से कम ऐसे मामलों में कानून को स्पष्ट करना जरूरी है। ताकि आरोपियों के अधिकारों को कुचला न जा सके।’ साथ ही कहा कि सीआरपीसी की धारा 437 के तहत यदि अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है तो आरोपी जमानत हासिल करने का अधिकारी होता है। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में कई वकीलों ने अपने मुवक्किलों की ओर से ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’ सिद्धांत पर जोर दिया। इसके बावजूद विशेष कोर्ट ने द्रमुक की सांसद कनिमोझी एवं अन्य की जमानत याचिका ठुकरा दी। साथ ही कहा था कि कानून सभी के लिए समान है। इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश जाना जरूरी है।
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