Thursday, 6 October 2011

नियम के विरुद्ध उम्र में छूट नहीं दी जा सकती

नई दिल्ली, एजेंसी : सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को नियम के विरुद्ध नौकरियों के लिए उम्र में छूट नहीं दी जा सकती। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अगर वैधानिक नियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को नौकरियों में आयु में छूट देने का प्रावधान नहीं करते हैं तो उन्हें इस तरह का लाभ नहीं दिया जा सकता है। न्यायमूर्ति जे एम पांचाल और न्यायमूर्ति एच एल गोखले की पीठ ने कहा कि अगर नियम आयु में छूट की अनुमति नहीं देते हैं तो अदालतों को इसमें ढील देने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर नियमों में आयु में कोई छूट देने का प्रावधान नहीं है तो किसी भी न्यायिक व्याख्या से इसे नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला जमालुद्दीन द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए सुनाया। जमालुद्दीन जम्मू कश्मीर में तदर्थ मुंसिफ थे। पीठ ने हालांकि उच्च न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष से कहा कि वह नियमों में ढील देने पर विचार करे क्योंकि राज्य की उच्चतर न्यायिक सेवा में आयु में ढील देने का प्रावधान है। उन्हें जम्मू कश्मीर न्यायिक सेवा में 13 अगस्त 2001 को तदर्थ मुंसिफ नियुक्त किया गया था। बाद में जब जम्मू कश्मीर लोक सेवा आयोग ने नियमित नियुक्ति के लिए चार दिसंबर 2001 को अधिसूचना जारी की तो उन्होंने अनुसूचित जनजाति श्रेणी में मुंसिफ के पद के लिए आवेदन किया। कहा गया है कि आवेदक की आयु जिस साल अधिसूचना जारी की गई उस साल एक जनवरी को 35 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। जमालुद्दीन का आवेदन खारिज कर दिया गया क्योंकि उनकी आयु 11 माह अधिक थी। जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की एकल पीठ और दो सदस्यीय पीठ ने आयोग के फैसले को बरकरार रखा। जमालुद्दीन का तर्क था कि एससी-एसटी के लिए सरकारी सेवा में नियुक्ति की आयु सीमा 38 साल तक है, इसलिए उसके आवेदन को स्वीकार किया जाना चाहिए। उसने दलील दी कि उच्च न्यायिक सेवाओं में एससी-एसटी को आयु सीमा में छूट दी गई है। राज्य ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उच्च न्यायिक सेवा में सामान्य श्र्रेणी के लिए आयु सीमा 35 से 45 वर्ष है लेकिन एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आयु सीमा में दो साल की छूट दी गई है। शिकायतकर्ता छूट के दायरे में नहीं आता।
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