Monday 25 July 2011

जन लोकपाल बनाम सरकारी लोकपाल

जन लोकपाल बनाम सरकारी लोकपाल


  • सरकारी लोकपाल कानून में कलेक्टर, पुलिस, राशन, अस्पताल, शिक्षा, सड़क, उद्योग, पंचायत, नगर पालिका, वन विभाग, सिंचाई विभाग, लाईसेंस, पेंशन, रोड़वेज़ जैसे तमाम विभागों के भ्रष्टाचार को जांच से बाहर रखा गया है। 
  • २ जी, कॉमनवेल्थ, आदर्श जैसे घोटालें इसके बावजूद चलते रहेंगे क्योंकि प्रधानमंत्री इसकी जाँच से बाहर रहेंगे और मंत्री या अफसरों के खिलाफ जाँच बड़ी मुश्किल से होगी
  • सरकारी लोकपाल कानून के दायरे में किसी ज़िले में केवल केन्द्र सरकार के विभागों के डायरेक्टर रैंक के अधिकारी आएंगे। यानि जिस ज़िले में डाक, रेलवे, इन्कम टैक्स, टेलीकॉम आदि विभाग का कोई दफ्तर यदि हुआ तो लोकपाल केवल उसके सबसे बड़े अधिकारी के भ्रष्टाचार की जांच कर सकेगा। उसके अलावा केन्द्र या राज्य सरकार का कोई भी कर्मचारी इस कानून के दायरे में नहीं आएगा। 
  • पूरे देश में यह कानून केन्द्र सरकार के कुल 65000 सीनियर अधिकारियों पर लागू होगा। इसके अलावा पूरे देश के करीब 4.5 लाख एनजीओ और असंख्य गैर पंजीकृत समूह (बड़े बड़े आन्दोलनों से लेकर शहरों गांवो के छोटे छोटे युवा समूह तक) इस कानून की जांच के दायरे में होंगे। 
  • सरकारी लोकपाल कानून में भ्रष्टाचार के दोषी के लिए न्यूनतम सज़ा 6 महीने की जेल है। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने वाले को (शिकायत गलत पाए जाने पर) मिलने वाली सज़ा दो साल है। 
  • यदि कोई सरकारी कर्मचारी, अपने खिलाफ शिकायत करने वाले व्यक्ति पर मुकदमा चलाना चाहेगा तो वकील की फीस व अन्य खर्चे सरकार भरेगी।
  • बईमान, नकारा आदि सरकार के करीबी लोग  लोकपाल बनकर बैठ जायेगे


मुद्दे   
जनलोकपाल के प्रस्ताव
सरकारी लोकपाल के प्रस्ताव
टिप्पणी
प्रधानमंत्री 
लोकपाल के पास प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने की ताकत हो.. लेकिन इसमें फालतू और निराधार शिकायतों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था।
प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल के दायरे से बाहर।
आज की व्यवस्था में प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत की जा सकती है। सरकार चाहती है कि इसकी जांच निष्पक्ष और स्वायत्त लोकपाल की जगह प्रधानमंत्री के अधीन आने वाली सीबीआई ही करे।
न्यायपालिका
लोकपाल के पास न्यायपालिका के खिलाफ भष्टाचार के आरोपों की जांच करने की ताकत हो.. लेकिन इसमें फालतू और निराधार शिकायतों को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था।
न्यायपालिका के भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल के दायरे से बाहर
सरकार इसे ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में लाना चाहती है। इस बिल के मुताबिक किसी जज के भ्रष्टाचार की जांच की इजाज़त तीन सदस्यीय पैनल देगा (जिसमें से दो उसी अदालत से वर्तमान जज होंगे और एक उसी अदालत के रिटायर मुख्य न्यायधीश होंगे।)ज्यूडिशियल अकाउण्टेबिलिटी बिल में बहुत सी और खामियां हैं। हमें न्यायपालिका के भ्रष्टाचार को इसके दायरे में लाने पर कोई आपत्ति नही है बशर्ते कि यह सख्त हो और लोकपाल के साथ साथ बनाया जाए। न्यायपालिका के भ्रष्टाचार से मुक्ति को आगे के लिए लटकाना ठीक नहीं है।
सांसद
अगर किसी सांसद पर रिश्वत लेकर संसद में वोट देने या सवाल पूछने के आरोप लगते हैं तो लोकपाल के पास उसकी जांच करने का अधिकार होना चाहिए।
सरकार ने इसे लोकपाल के दायरे से बाहर रखा है।
रिश्वत लेकर संसद में वोट डालने या सवाल उठाने का काम किसी भी लोकतन्त्र की नींव हिला सकता है। इतने संगीन भ्रष्ट आचरण को निष्पक्ष जांच के दायरे से बाहर रखकर सरकार सांसदों को संसद में रिश्वत लेकर बोलने का लाईसेंस देकर उन्हें संरक्षण प्रदान करना चाहती है।
जनता की आम शिकायतों का निवारण
यदि कोई अधिकारी सिटीज़न चार्टर में निर्धारित समय सीमा में जनता का काम पूरा नहीं करता है तो लोकपाल उसके ऊपर ज़ुर्माना लगाएगा और भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाएगा। 
सिटीज़न चार्टर का उल्लंघन करने वाले अधिकारी पर ज़ुर्माने का कोई प्रावधान नहीं। अत: सिटीज़न चार्टर की  समय सीमा सिर्फ कागज़ पर लिखने के लिए होगी।
23 मई की बैठक में सरकार ने हमारी ये मांग स्वीकार कर ली थी लेकिन यह दुर्भाग्यजनक है कि सरकार अपनी बात से पलट गई। 
सीबीआई
सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल में मिला देना चाहिए। 
सरकार सीबीआई को अपने हाथ में रखना चाहती है।
केन्द्र सरकारें सीबीआई का दुरुपयोग विपक्षी दलों और उनकी राज्य सरकारों के खिलाफ करती रही हैं। सरकार ने सीबीआई को सूचना अधिकार के दायरे से भी निकाल लिया है जिससे इस संस्था में भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा। जब तक सीबीआई सरकार के अधीन रहेगी इसी तरह भ्रष्ट बनी रहेगी।
लोकपाल के सदस्यों का चयन
1. एक व्यापक आधार वाली चयन समिति जिसमें दो राजनेता, 4 जज और 2 संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुख शामिल हैं। 
2. चयन समिति के लिए सम्भावित उम्मीदवारों की सूची बनाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं के अवकाशप्राप्त प्रमुखों वाली एक सर्च कमेटी जो चयन समिति से स्वतन्त्र होगी।
3. चयन की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और जनभागीदारी वाली होगी।
1. सरकारी बिल में दस सदस्यों वाली चयन समिति में से पांच लोग सत्ता पक्ष से होंगे, कुल मिलाकर 6 राजनेता होंगे। इससे यह तय है कि लोकपाल सदस्य पद पर बेईमान, पक्षपाती और कमज़ोर लोग ही पहुंच पाएंगे। 
2. सर्च कमेटी बनाने का काम चयन समिति करेगी अत: यह पूरी तरह चयन समिति के अनुसार काम करेगी।
3. चयन की कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं यह पूरी तरह चयन समिति पर निर्भर करेगी। 
सरकार के प्रस्ताव में साफ है कि सरकार जिसे चाहे लोकपाल सदस्य और अध्यक्ष बना सकेगी। आश्चर्यजनक है कि सरकार 7 मई की बैठक में चयन समिति के स्वरूप और चयन की प्रक्रिया पर सहमत हो गई थी। केवल सर्च कमेटी में किसे होना इस मुद्दे पर असहमति थी। लेकिन सरकार आश्चर्यजनक रूप से अपनी बात से पलट गई है।
लोकपाल किसके प्रति जवाबदेह होगा?
देश के आम लोगों के प्रति। कोई भी नागरिक सुप्रीम कोर्ट में शिकायत कर लोकपाल को हटाने की मांग कर सकता है। 
सरकार के प्रति। केवल सरकार ही लोकपाल को हटाने की मांग कर सकती है।
लोकपाल के चयन और उसे हटाने की ताकत सरकार के हाथ में होने से यह सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर ही रह जाएगा। इसका भविष्य उन्हीं सीनियर अफसरों के हाथों में होगा जिसके खिलाफ इसे जांच करनी है। यह अपने आप में विरोधभासी है। 
लोकपाल के कर्मचारियों की निष्ठा 
लोकपाल के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें सुनने का काम एक स्वायत्त व्यवस्था 
लोकपाल खुद अपने कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ जांच करेगा। इससे उसके काम में ज़बर्दस्त विरोधाभास पैदा होगा। 
सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल या तो स्वयं के प्रति जवाबदेह होगा या फिर सरकार के प्रति। हम इसे देश के आम लोगों के प्रति जवाबदेह बनाना चाहते हैं। 
जांच का तरीका
लोकपाल द्वारा जांच करने का तरीका सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुसार वही होगा जो किसी अपराध के मामले में होता है। शुरुआती जांच के बाद एक एफ.आई.आर. दर्ज होगी। जांच के बाद मामला अदालत के सामने रखा जाएगा जहां इस पर सुनवाई होगी। 
सरकार सीआरपीसी को बदल रही है। आरोपी को विशेष संरक्षण प्रदान किया जा रहा है। शुरुआती जांच के बाद तमाम सबूत आरोपी को दिखाए जाएंगे और उससे पूछा जाएगा कि उसके खिलाफ एफ.आई.आर क्यों न दर्ज की जाए। जांच पूरी होने के बाद, एक बार फिर सारे सबूत उसके सामने रखे जाएंगे और सुनवाई करके उससे पुछा जाएगा कि उसके खिलाफ मुकदमा क्यों न चलाया जाए। जांच के दौरान अगर किसी और व्यक्ति के खिलाफ भी जांच शुरू की जानी है तो उसे भी अब तक के तमाम सबूत दिखाकर उसकी सुनवाई की जाएगी।
सरकार ने जांच प्रक्रिया को पूरा का पूरा मज़ाक बना कर रख दिया है। यदि आरोपियों को हर स्तर पर इस तरह सबूत दिखाए गए तो इससे न सिर्फ उन्हें बाकी के सबूत मिटाने में मदद मिलेगी बल्कि उनके खिलाफ गवाही देने वालों एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की जान भी खतरे में पड़ जाएगी। जांच का ऐसा अनोखा तरीका दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता। इससे हरेक मामले को शुरू में ही दफना दिया जाएगा।
निचले स्तर के अधिकारी 
भ्रष्टाचार निरोधी कानून में लोकसेवक की परिभाषा में शामिल सभी लोग इसके दायरे में आएंगे। जिसमें निचले स्तर के अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं।
इसमें केवल केन्द्र सरकार के क्लास-1 अधिकारियों को ही शामिल किया जा रहा है।
निचले स्तर की नौकरशाही को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की सरकार की मंशा समझ से परे है। इसका कारण हो सकता है कि सरकार सीबीआई को अपने अधीन बनाए रखना चाहती है। क्योंकि अगर सभी कर्मचारी लोकपाल के अधीन आ जाएंगे तो सरकार के पास सीबीआई को अपने अधीन बनाए रखने का कोई आधार नहीं बचेगा।
लोकायुक्ता
केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों का गठन एक ही कानून बनाकर किया जाए। 
इस कानून से केवल केन्द्र में लोकपाल का गठन होगा। 
प्रणब मुखर्जी के अनुसार कुछ मुख्यमन्त्रियों ने इस कानून के तहत लोकायुक्तों के गठन पर आपत्ति जताई है। लेकिन उन्हें याद दिलाया गया कि सूचना के अधिकार के एक कानून के तहत ही केन्द्र और राज्यों में एक साथ सूचना आयोगों का गठन हुआ था तो इसका कोई जवाब वे नहीं देते। 
भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा
लोकपाल भ्रष्टाचार उजागर करने वालों, गवाहों और भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगों को सुरक्षा मुहैया करायेगा
इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है
सरकार का कहना है कि भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा के लिए अलग से क़ानून बनाया जा रहा है। लेकिन वो क़ानून इतना कमजोर है कि पिछले महीने संसद की स्टैण्डिंग कमेटी ने भी इसे बेकार बताया है। इस कमेटी की अध्यक्ष जयन्ती नटराजन हैं। लोकपाल बिल की संयुक्त ड्राफ्टिंग कमेटी की 23 मई की बैठक में यह तय किया गया था कि लोकपाल को एक अलग क़ानून के तहत भ्रष्टाचार उजागर करने वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जायेगी और उस क़ानून पर चर्चा और उसमें सुधार इसी कमेटी में किया जायेगा। लेकिन यह नहीं किया गया।
उच्च न्यायालयों में स्पेशल बेंच
सभी उच्च न्यायालयों में भ्रष्टाचार के मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए स्पेशल बेंच बनाये जाएंगे
इसका प्रावधान नहीं है
एक अध्ययन के अनुसार भ्रष्टाचार से सम्बंधित मामलों की सुनवाई पूरी होने में 25 साल लगते हैं। अब समय आ गया है कि इसका समाधान निकाला जाये।
सीआरपीसी
भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई पूरी होने में कोर्ट में इतना समय क्यों लगता है और क्यों हमारी जांच एजेंसियां इस तरह के मामले हार जाती हैं? इस तरह के पुराने अनुभवों के आधार पर और हर मामलें लगातार स्टे लेने से बचने के लिए सीआरपीसी के कुछ प्रावधानों में बदलाव की बात कही गई है 
नहीं शामिल किया गया है
भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों का निलम्बन
जांच पूरी होने के बाद भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ कोर्ट में मुक़दमा दायर करने के साथ साथ लोकपाल की एक बेंच खुली सुनवाई करते हुए उस अधिकारी को नौकारी से निकालने का निर्णय दे सकती है।
मंत्री यह तय करेंगे कि भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी से निकाला जाये या नहीं। देखा यह गया है कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में मंत्री भ्रष्टाचार का लाभ उठा रहे होते हैं, खास तौर पे जब बडे़ अधिकारी इसमें शामिल हों, ऐसी स्थिति में पुराने अनुभव बताते है कि भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी से निकालने की जगह मंत्री उसे सम्मानित करते हैं।
भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को नौकरी से हटाने का अधिकार लोकपाल को दिया जाना चाहिए ना कि उसी विभाग के मंत्री को।
भ्रष्टाचार करने वालों के लिए दण्ड
अधिकतम आजीवन कारावास
बडे़ अधिकारियों को अधिक सजा
अगर दोषी उद्योगपति हो तो अधिकतम जुर्माना लगाया जायेगा
अगर किसी उद्योगपति को एक बार सजा हो जाती है तो उसे भविष्य में हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया जायेगा
इनमें से कोई नहीं स्वीकार किया गया। केवल अधिकतम सजा 7 से बढ़ा कर 10 साल कर दी
वित्तीय स्वतन्त्रता
लोकपाल के 11 सदस्य यह तय करेंगे कि उन्हें कितना बजट चाहिए
वित्त मन्त्रालय यह तय करेगा कि लोकपाल को कितना बजट दिया जाये
यह लोकपाल की वित्तीय स्वतन्त्रता से बड़ा समझौता है
भविष्य में होने वाले नुकासन को रोकना
अगर लोकपाल के समक्ष वर्तमान में चल रहे किसी प्रोजेक्ट से सम्बंधित भ्रष्टाचार का कोई मामला आता है तो लोकपाल की यह जिम्मेदारी होगी कि वो भ्रष्टाचार रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे। ऐसी स्थिति में जरूरत पड़ने पर लोकपाल उच्च न्यायालये से आदेश भी प्राप्त कर सकता है
इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है।
2 जी घोटाले के सम्बन्ध् में यह कहा जाता है कि जब इसकी प्रक्रिया चल रही थी उस समय ही इससे सम्बंधित जानकरियां बाहर आ गई थीं। क्या कुछ एजेंसियों की यह जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि इस तरह के मामलों में जब भ्रष्टाचार चल रहा था तभी रोकने के लिए कार्रवाई करें ना कि बाद में लोगों को सजा दी जाए।
फोन टैपिंग 
लोकपाल की बेंच फोन टैपिंग  का आदेश दे सकती है
गृह सचिव अनुमति देंगे
गृह सचिव उन्हीं लोगों के नियन्त्रण में काम करते है जिनके खिलाफ कार्रवाई करनी होती है। इससे जांच करने का कोई फायदा नहीं होगा।
अधिकारों का बटवारा 
लोकपाल के सदस्य केवल बड़े अधिकारियों और नेताओं या बड़े स्तर पर हुए भ्रष्टाचार के मामलों की हीं सुनवाई करेंगे। बाकी मामलों की जांच लोकपाल के अन्दर के अधिकारी करेंगे।
सभी तरह के काम केवल लोकपाल के 11 सदस्य ही करेंगे। वास्वत में अधिकारों का कोई बटवारा ही नहीं है।
इससे यह तय है कि लोकपाल आने से पहले ही समाप्त हो जायेगा। केवल 11 सदस्य सभी मामलों पर कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। कुछ ही समय में शिकायतों के बोझ से लोकपाल दब जायेगा।
एनजीओ
केवल सरकारी सहायता प्राप्त गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ही दायरे में
छोटे, बड़े सभी तरह के एनजीओ और संगठन होंगे
भ्रष्टाचार के आन्दोलनों और गैर सरकारी संगठनों को दबाने का नया तरीका है
फालतू और निराधार शिकायतें
किसी तरह की कैद नहीं केवल जुर्मानें का प्रावधान। लोकपाल यह तय करेंगे कि कोई शिकायत फालतू और निराधार है या नहीं।
2 से 5 साल तक की कैद और जुर्माना। आरोपी शिकायतकर्ता के खिलाफ कोर्ट में शिकायत दायर कर सकता है। दिलचस्प बात यह है कि आरोपी को कोर्ट में केस करने के लिए वकील और उस पर होने वाले सभी खर्चे सरकार वहन करेगी। साथ ही शिकायतकर्ता को आरोपी को क्षतिपूर्ति भी देनी पड़  सकती है।
इससे अरोपी अधिकारियों को एक हथियार मिल जायेगा जिससे वो शिकायतकर्ता को धमका सकते हैं। हर मामले में वो शिकायतकर्ताओं के खिलाफ कोर्ट केस दायर कर देंगे जिससे कोई भी भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर पायेगा। एक और दिलचस्प बात यह है कि भ्रष्टाचार साबित होने पर न्यूनतम कैद 6 महीने की है, लेकिन गलत शिकायत करने पर 2 साल की कैद होगी।
;