Friday 22 July 2011

रिलायंस इन्फ्रा आरटीआइ के दायरे में

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई निजी क्षेत्र की कंपनी रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के ग्राहक अब सूचना अधिकार (आरटीआइ) कानून के तहत इस कंपनी से मनमाफिक सूचनाएं हासिल कर सकेंगे। यह फैसला महाराष्ट्र के मुख्य सूचना आयुक्त ने दिया है। इस फैसले ने निजी क्षेत्र की अन्य कंपनियों पर भी आरटीआइ का फंदा कसने का रास्ता खोल दिया है। राज्य सूचना आयोग की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 19 जुलाई, 2011 को दिए अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड इलेक्टि्रसिटी एक्ट-2003 के अनुसार उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति जैसी सार्वजनिक सेवा से जुड़ी कंपनी है। इसे महाराष्ट्र बिजली नियामक आयोग द्वारा उपभोक्ताओं को बिजली वितरण का लाइसेंस दिया गया है। इसलिए उपभोक्ताओं के हित की सुरक्षा के लिए इस पर सूचना अधिकार कानून-2005 लागू होता है। यह फैसला सुनाते हुए आयोग ने रिलायंस इन्फ्रा को आदेश दिया है कि वह सूचना अधिकार कानून-2005 की धारा 5(1) के अनुरूप राज्य सूचना अधिकारी व धारा 19(1) के अनुरूप प्रथम अपीलीय अधिकारी की नियुक्ति करे और याचिकाकर्ता को मांगी गई सूचना के अनुसार संबंधित दस्तावेजों की प्रतियां उपलब्ध कराए। उल्लेखनीय है कि अब तक सूचना अधिकार कानून सरकारी और अर्धसरकारी दफ्तरों के ही जी का जंजाल बना हुआ था। लेकिन, इस आदेश के बाद अब निजी क्षेत्र पर भी इसका शिकंजा कसने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। रिलायंस इन्फ्रा को आरटीआइ कानून के दायरे में लाने की मुहिम मुंबई के एक आरटीआइ कार्यकर्ता अनिल गलगली ने करीब 32 माह पहले शुरू की थी। रिलायंस से एक सूचना मांगने पर जब कंपनी ने उन्हें यह कहकर टरकाना चाहा कि वह आरटीआइ अधिनियम के दायरे में नहीं आती तो गलगली ने राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। पहले प्रयास में उन्हें वहां भी निराशा हाथ लगी। सूचना आयोग को पुन: भेजे अपने आवेदन में गलगली ने दलील दी कि लाखों लोगों को अत्यावश्यक सेवा मुहैया कराने वाली इस कंपनी को तकनीकी तौर पर निजी नहीं माना जा सकता। गलगली का तर्क था कि राज्य बिजली नियामक आयोग (एमईआरसी) से लाइसेंस लेकर बिजली आपूर्ति करने वाली इस कंपनी पर आयोग के सभी नियम लागू होते हैं।
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