जागरण संवाददाता, नई दिल्ली
फर्जी कर्मचारियों के मामले में उच्च न्यायालय में एमसीडी आयुक्त ने हलफनामा दायर करते हुए कहा है कि पिछली सुनवाई पर दिल्ली सरकार ने जो दावा किया था, वह तथ्यों पर आधारित नहीं है। सरकार की तरफ से अदालत को बताया गया था कि लगभग पांच साल से एमसीडी हजारों फर्जी कर्मचारियों को वेतन दे रही है। एक अंदाजे के अनुसार अब तक पांच सौ करोड़ रुपये लुटाए जा चुके हैं। एमसीडी आयुक्त ने अपने हलफनामे में कहा है कि वह इस मामले की जांच कर रही क्राइम ब्रांच को पूरा सहयोग करने के लिए तैयार हैं क्योंकि वह निगम के उस हिस्से को पहचानने में मदद कर रही है जिसमें सुधार की जरूरत है। इस मामले में अगर किसी अधिकारी की तरफ से कोई लापरवाही पाई गई तो उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। उनकी जांच में गायब पाए गए 944 कर्मचारियों को टर्मिनेट भी कर दिया गया है। अब मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ के समक्ष चार अगस्त को सुनवाई होगी। पिछली सुनवाई पर अदालत ने एमसीडी को यह भी निर्देश दिया था कि वह क्राइम ब्रांच को कर्मचारियों के संबंध में सही आकड़ा उपलब्ध कराए क्योंकि पुलिस का कहना है कि एमसीडी बार-बार अलग-अलग आकड़े दे रही है। एमसीडी आयुक्त ने 18 पेज के हलफनामे में कार्यप्रणाली को दुरूस्त करने के लिए उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि बार-बार आकड़ों में इसलिए फर्क आ रहा है क्योंकि इस बीच कई नए कर्मी भर्ती हुए है और कुछ रिटायर भी हो गए हैं। इतना ही नहीं सफाई कर्मचारियों की भी कई श्रेणी हंै जो इसका एक कारण बनी है। मीडिया ने लगभग 22853 कर्मचारियों को फर्जी बताया था। बाद में जांच में सिर्फ 944 कर्मी गायब पाए गए। इस संबंध में अदालत में जागरूक वेलफेयर सोसायटी ने याचिका दायर की थी। इसमें मांग की गई थी कि इस मामले की जांच सीबीआइ या अन्य किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए। नंवबर, 2009 में निगम में लगाई गई बायोमैट्रिक मशीन की जांच करने के बाद कहा था कि लगभग 22853 स्थाई कर्मचारी गायब हैं।