राजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली
केंद्र ने शिक्षा का अधिकार कानून तो बना दिया लेकिन उससे बच्चों के अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा की राह जल्दी आसान हो जाएगी, यह कहना मुनासिब नहीं होगा। वजह साफ है कि कानून पर अमल में आने के एक साल बाद भी 16 राज्यों ने अभी तक उसके लिए नियमों-कायदों की अधिसूचना तक जारी नहीं की है। लिहाजा केंद्र ने उन्हें दो टूक बता दिया है कि जब तक वे ऐसा नहीं करेंगे, उनके लिए सर्वशिक्षा अभियान में नए स्कूलों, शिक्षकों के नये पदों समेत दूसरी जरूरतों को मंजूरी नहीं दी जाएगी। सूत्रों के मुताबिक झारखंड, पंजाब, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली समेत 16 राज्यों ने अभी तक शिक्षा का अधिकार कानून के अमल के लिए नियमों-कायदों के लिए जरूरी अधिसूचना नहीं जारी की है। अलबत्ता बिहार व हरियाणा समेत 18 राज्यों ने कानून के अनुपालन के लिए खुद के नियम बना लिए हैं या फिर केंद्र के ही नियमों-कायदों को ही अपना लिया है। केंद्र ने राज्यों के सामने यह मामला 25 अप्रैल को सर्वशिक्षा अभियान के परियोजना मंजूरी बोर्ड (पीएबी) की बैठक में भी उठाया था। तब राज्यों ने इस बाबत अपने-अपने तर्क दिए थे। बैठक में उत्तर प्रदेश ने नियमों के मसौदा विधि विभाग के विचाराधीन होने की बात कही थी, तो झारखंड ने हफ्ते भर में कैबिनेट की मंजूरी की बात कही थी। पंजाब ने भी इस बाबत जल्दी ही कदम उठाने का भरोसा दिया था। राज्यों की अलग-अलग सफाई के बाद भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय उन्हें यह स्पष्ट कर चुका है कि जब तक वे अधिसूचना नहीं जारी करेंगे, उनके यहां सर्वशिक्षा अभियान की परियोजनाओं को मंजूरी बिल्कुल नहीं दी जायेगी। इसका मतलब यह है कि ऐसे राज्यों में नए स्कूलों को खोलने, शिक्षकों के नये पद सृजित करने, नए स्कूल भवन बनाने, आवासीय व परिवहन सुविधा उपलब्ध कराने जैसे प्रस्ताव जस के तस पड़े रहेंगे। बताते हैं कि मंत्रालय आठ जून को राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में फिर इस मुद्दे को उठाने जा रहा है। सरकार ने कानून के अमल की मॉनीटरिंग का जिम्मा केंद्र में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को और राज्यों में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को सौंपा है। कई राज्यों ने अभी इसका गठन नहीं किया है। शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में इसकी भी समीक्षा होगी। पूर्व में राज्यों के शिक्षा मंत्रियों का सम्मेलन छह जून को होना था, जो अब आठ जून को होगा।