राजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली
जब गुरु ही नाकाबिल हो तो चेले से काबिलियत की उम्मीद कैसे की जा सकती है। अनिवार्य और गुणवत्तापूर्ण मुफ्त शिक्षा का कानून तो सरकार ने बना दिया, लेकिन उसे अमल में लाने के लिए उसके पास शिक्षक ही नहीं हैं। पूरे देश के सरकारी स्कूलों में करीब 13 लाख शिक्षकों की कमी पहले से है। जो शिक्षक हैं उनमें करीब सात लाख पढ़ाने के लिए जरूरी न्यूनतम योग्यता नहीं रखते। यह स्थिति तब है जब शिक्षा के अधिकार कानून को अमल में आए लगभग डेढ़ साल हो गए हैं। पिछले महीने तक की सूचना के आधार पर देश में 6.70 लाख शिक्षक शिक्षा का अधिकार कानून के मापदंडों के लिहाज से जरूरी योग्यता पूरी नहीं करते। इस पर सरकार का तर्क है कि मापदंड पूरा नहीं करने वाले शिक्षकों को कानून के अमल में आने के पांच साल के भीतर खुद को उस योग्य बनाने का मौका दिया गया है। दरअसल, सर्वशिक्षा अभियान के तहत शिक्षकों को प्रशिक्षण दिए जाने का भी प्रावधान है। इसके तहत पहले से कार्यरत शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की योजना है। हालांकि, इस दिशा में डेढ़ साल बीतने के बाद भी उत्साहपूर्ण नतीजे नहीं मिले हैं। गौरतलब है कि छह-चौदह साल के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून अमल में आने के साथ ही राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीइ) ने शिक्षकों के लिए न्यूनतम अर्हताएं भी तयकर दी हैं। इनके मुताबिक कक्षा एक से पांच तक के छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षक का इंटर होना और कक्षा छह से आठ तक के छात्रों को पढ़ाने के लिए स्नातक के साथ दूसरे मापदंडों के अलावा शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करनी होगी। केंद्र सरकार के अधीन स्कूलों के लिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने इस साल पहली बार केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीइटी) कराई। इसमें बमुश्किल 14 प्रतिशत अभ्यर्थी ही पास हो पाए। राज्य सरकारों को भी इसी तर्ज पर अपने यहां शिक्षक पात्रता परीक्षा करानी है।
जब गुरु ही नाकाबिल हो तो चेले से काबिलियत की उम्मीद कैसे की जा सकती है। अनिवार्य और गुणवत्तापूर्ण मुफ्त शिक्षा का कानून तो सरकार ने बना दिया, लेकिन उसे अमल में लाने के लिए उसके पास शिक्षक ही नहीं हैं। पूरे देश के सरकारी स्कूलों में करीब 13 लाख शिक्षकों की कमी पहले से है। जो शिक्षक हैं उनमें करीब सात लाख पढ़ाने के लिए जरूरी न्यूनतम योग्यता नहीं रखते। यह स्थिति तब है जब शिक्षा के अधिकार कानून को अमल में आए लगभग डेढ़ साल हो गए हैं। पिछले महीने तक की सूचना के आधार पर देश में 6.70 लाख शिक्षक शिक्षा का अधिकार कानून के मापदंडों के लिहाज से जरूरी योग्यता पूरी नहीं करते। इस पर सरकार का तर्क है कि मापदंड पूरा नहीं करने वाले शिक्षकों को कानून के अमल में आने के पांच साल के भीतर खुद को उस योग्य बनाने का मौका दिया गया है। दरअसल, सर्वशिक्षा अभियान के तहत शिक्षकों को प्रशिक्षण दिए जाने का भी प्रावधान है। इसके तहत पहले से कार्यरत शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की योजना है। हालांकि, इस दिशा में डेढ़ साल बीतने के बाद भी उत्साहपूर्ण नतीजे नहीं मिले हैं। गौरतलब है कि छह-चौदह साल के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून अमल में आने के साथ ही राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीइ) ने शिक्षकों के लिए न्यूनतम अर्हताएं भी तयकर दी हैं। इनके मुताबिक कक्षा एक से पांच तक के छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षक का इंटर होना और कक्षा छह से आठ तक के छात्रों को पढ़ाने के लिए स्नातक के साथ दूसरे मापदंडों के अलावा शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करनी होगी। केंद्र सरकार के अधीन स्कूलों के लिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने इस साल पहली बार केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीइटी) कराई। इसमें बमुश्किल 14 प्रतिशत अभ्यर्थी ही पास हो पाए। राज्य सरकारों को भी इसी तर्ज पर अपने यहां शिक्षक पात्रता परीक्षा करानी है।
न्यूनतम मापदंड:
शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करने को 60 प्रतिशत अंक जरूरी
सर्टिफिकेट अधिकतम सात साल तक वैध
निश्चित अवधि में शिक्षक न बन पाने पर पास करनी होगी परीक्षा
केंद्र और राज्य सरकारों को साल में कम से कम एक बार टीईटी कराना अनिवार्य
कोई भी अभ्यर्थी किसी भी राज्य या केंद्र के अधीन आयोजित टीईटी में शामिल हो सकता है। उत्तीर्ण अभ्यर्थी का टीईटी सर्टिफिकेट सभी राज्यों में मान्य होगा।