बलवान शर्मा, भिवानी हरियाणा शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं में पप्पू बोर्ड की कृपा से पास हो रहे हैं, और यह बोर्ड खुद को मेरिट में लाने के लिए करता है। यह खुलासा बोर्ड ने दैनिक जागरण द्वारा सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) के तहत मांगी गई जानकारी में किया है। बोर्ड की ओर से बताया गया है कि कमजोर परीक्षा परिणाम को अच्छा करने के लिए नियम 60ए के तहत प्रत्येक बच्चे को 30 से 40 अंक दे दिए जाते हैं। आरटीआइ में पूछा गया था शिक्षा बोर्ड द्वारा घोषित पिछले दो साल का वास्तविक रिजल्ट क्या था और घोषणा के बाद कितना हो गया। जवाब में बताया गया कि दसवीं कक्षा का वर्ष 2010-11 का वास्तविक परीक्षा परिणाम 39.41 प्रतिशत था। मॉडरेशन के बाद यह 68.03 प्रतिशत हो गया। बोर्ड प्रशासन ने प्रत्येक बच्चे को अंग्रेजी विषय में 8, गणित में 15, साइंस में 10 और 2, सामाजिक विषय में 6 कृपांक दे दिए। इसी तरह बारहवीं कक्षा के सत्र 2010-2011 का वार्षिक परीक्षा परिणाम वास्तव में 58.31 प्रतिशत था। कृपांक के बाद इसे 70.74 कर दिया गया। अक्टूबर, 2010 में संपन्न हुई रि-अपीयर परीक्षा में वास्तविक रिजल्ट 51.97 था, जिसे कृपांक के बाद 61.92 प्रतिशत कर दिया गया। इसी दौरान आयोजित की गई नियमित परीक्षार्थियों की प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा का असली परिणाम 50.32 प्रतिशत था, जिसे कृपांक देकर इसे 73. 43 कर दिया गया। शिक्षा बोर्ड के इस फैसले का सामान्य छात्रों को तो फायदा मिला और वे तृतीय व द्वितीय श्रेणी से सीधे प्रथम श्रेणी में पहुंच गए। प्रथम श्रेणी के बच्चे मेरिट में आकर टॉप टेन में आने वाले बच्चों के पास आ बैठते हैं लेकिन कुल अंकों से मात्र 15-20 अंक कम हासिल कर टॉप-टेन में आने वाले बच्चों को कृपांकों का फायदा नहीं मिल पाता। फिर कृपांक देने की तैयारी : इस बार रिजल्ट काफी कम आया है। अधिकारियों का एक दल बोर्ड अध्यक्ष के पास गया है। 20 व 28 दिसंबर को आने वाले परिणाम के लिए कृपांक देने की सहमति का प्रयास किया जा रहा है। मेरिट के बच्चों को नुकसान है : सहायक सचिव एनडी शर्मा का कहना है कि मॉडरेशन शिक्षा बोर्ड के नियम 60 ए के तहत किया जाता है। उन्होंने माना कि इससे मेरिट वाले बच्चों को नुकसान होता है, लेकिन बोर्ड प्रशासन यह कार्यवाही नियमानुसार करता है।