Thursday 10 November 2011

शर्तिया इलाज वाले विज्ञापनों पर पाबंदी की तैयारी

राहुल आनंद, नई दिल्ली : शर्तिया इलाज का दावा करने वाले विज्ञापनों पर अब जल्द ही विराम लग सकता है। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ने ड्रग्स एंड रेमेडीज ऑब्जेक्शनल एडवर्टीजमेंट एक्ट 1954 को सख्ती से लागू कराने का फैसला किया है, जिससे ऐसे विज्ञापनों से निपटा जा सके। विज्ञापनों पर रोक लगाने के मकसद से 14 नवंबर को एक बैठक बुलाई गई है। विज्ञापनों के झांसे में आकर पीडि़तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए ड्रग्स कंट्रोलर ने सभी राज्यों के ड्रग्स कंट्रोलर को पत्र लिखकर बैठक में शामिल होने को कहा है। बैठक में भ्रमित करने वाले ऐसे सभी विज्ञापनों पर रोकथाम को लेकर चर्चा की जाएगी। ड्रग्स एंड रेमेडीज ऑब्जेक्शनल एडवर्टीजमेंट एक्ट के तहत पहले से ही शर्तिया इलाज का दावा करने वाले विज्ञापनों पर रोक है। एक्ट में यह साफ साफ कहा गया है कि कैंसर, एड्स, हार्ट अटैक, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह सहित करीब 60 बीमारियों के शर्तिया इलाज का दावा गलत है। बावजूद इसके इस कानून का दुरूपयोग हो रहा है और भ्रमित करने वाले विज्ञापन प्रकाशित हो रहे हैं। हाल ही में पंजाब सरकार ने ऐसे कुछ विज्ञापनों पर रोक लगाई है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने भी कुछ मरीजों को हुए नुकसान को देखते हुए दिल्ली सरकार से ऐसे विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। 14 नवंबर की बैठक में आईएमए भी हिस्सा ले रही है। आईएमए के सदस्य डॉक्टर अनिल बंसल ने बताया कि शर्तिया इलाज वाले विज्ञापन अगर लोगों में भ्रम पैदा करें और वे लोगों को फायदा के बजाय नुकसान पहुंचाएं तो उन पर प्रतिबंध जरूरी है। इस बारे में आईएमए की तरफ से 2009 में एक पत्र लिखा गया था। दिल्ली ड्रग्स कंट्रोलर ने उस समय चार लोगों की एक टीम भी बनाई थी, लेकिन यह टीम केवल कागजों पर ही काम करती रही।
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