नई दिल्ली, एजेंसी : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हों, उसे आरोप मुक्त होने तक सरकारी नौकरी में नियुक्ति के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता। कांस्टेबल नजरुल इस्लाम की नियुक्ति को निरस्त करते हुए शीर्ष अदालत ने रविवार को कहा कि जिन अधिकारियों के पास कांस्टेबलों की नियुक्ति करने की जिम्मेदारी थी, निश्चित तौर पर उनका यह कर्तव्य था कि वे यह पता लगाते कि यह उम्मीदवार कांस्टेबल के पद के लिए उपयुक्त है या नहीं। न्यायालय ने कहा कि जब तक कोई उम्मीदवार किसी आपराधिक मामले में आरोपों से बरी नहीं हो जाता, तब तक उसे कांस्टेबल के पद पर नियुक्ति के लिए यथासंभव उपयुक्त करार नहीं दिया जा सकता। न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने उच्च न्यायालय के निर्देशों को चुनौती देती पश्चिम बंगाल सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला दिया। उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि इस्लाम पर आपराधिक मुकदमे चलने के तथ्य के बावजूद उसे नियुक्ति दी जाए। इस्लाम को वर्ष 2007 में अस्थायी तौर पर भर्ती कर लिया गया था लेकिन सत्यापन के दौरान यह पता लगा कि वह जमानत पर है। सरकार ने तुरंत ही उसकी नियुक्ति को निरस्त कर दिया। इस्लाम की अर्जी को प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने खारिज कर दिया। फिर इस्लाम ने उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल की। बहरहाल उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि उसकी नियुक्ति पर फैसला लंबित आपराधिक मामले के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा। इसके खिलाफ बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अपील को स्वीकार करते हुए बेंच ने कहा कि जब किसी पर आइपीसी की धारा 148, 323, 380, 427 जैसी धाराओं में मुकदमा चल रहा हो तो उसे नागरिकों की सुरक्षा का दायित्व संभालने वाली सेवाओं में नियुक्ति नहीं दी जा सकती।