Thursday, 6 October 2011

परीक्षा की घड़ी

हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की 10वीं और 10+2 की प्रथम सेमेस्टर परीक्षा के लिए आइएएस अधिकारियों को पर्यवेक्षक बनाने की पहल परीक्षा को नकल रहित रखने, संचालन दक्षता बढ़ाने, अनुशासन और परीक्षा केंद्रों पर बाहरी हस्तक्षेप रोकने में निश्चित रूप से सहायक सिद्ध होगी। शिक्षा बोर्ड को अवश्य ध्यान रखना होगा कि ये अधिकारी परीक्षा की आधारभूत खामियों को ढूंढ़कर तात्कालिक निराकरण के साथ दीर्घकालिक दृष्टिकोण भी सरकार को भेजें। शिक्षा बोर्ड व आइएएस अधिकारियों को कई कटु सच्चाइयों से अवगत होना होगा कि प्रक्रिया भले ही बदल गई हो, पर नकल पहले भी चलती थी, अब भी। एक बात स्पष्ट कर दें कि अब परीक्षा केंद्रों पर औचक छापे की बात पुरानी हो चुकी है। संचार नेटवर्क इतना तेज- तर्रार हो गया कि उड़नदस्ते के चलने से पहले ही सूचना पंख लगा कर परीक्षा केंद्र तक पहुंच जाती है। पहले अधिकतर गांवों तथा कुछ शहरी परीक्षा केंद्रों पर बाहरी हस्तक्षेप करके नकल करवाई जाती थी। अब सब कुछ इतना एडवांस हो गया कि अधिसंख्य छात्र परीक्षा शुरू होने से तीन-चार दिन पहले यह तक पता लगा लेते हैं कि किस केंद्र पर किस अध्यापक की ड्यूटी लगी है। प्रायोगिक परीक्षा के परीक्षकों की नियुक्ति 15 से 20 दिन पहले लगती है पर खबर सभी तक पहुंच जाती है। कुछ प्रभावशाली लोग तो अपनी इच्छा व सुविधा के अनुसार कुछ अध्यापकों की परीक्षा केंद्रों पर ड्यूटी तक लगवा लेते हैं। इसके बाद बंद कमरे में किताबों, पर्चियों से सामूहिक नकल का खेल चलता है। उड़नदस्ते की सूचना मिलते ही चंद सेकेंड में किताबें, पर्चियां केंद्र से बाहर होती हैं। लगता यही है कि सब कुछ नियोजित तरीके से हो रहा है। इस संजाल में कौन-कौन शामिल हैं? क्या परीक्षा का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो रहा है? परीक्षा की शुचिता व गोपनीयता इतनी सस्ती क्यों हो गई कि जब चाहे तार-तार कर दी जाए? बाहरी हस्तक्षेप अब बड़ी समस्या नहीं, आंतरिक सुनियोजित नकल तंत्र से निपटना बड़ी चुनौती है। क्या इसे बोर्ड की प्राथमिकता में शामिल किया जाएगा? जब जमीन पर, टाट पर बैठकर घुटनों पर कार्ड बोर्ड रख कर परीक्षा देनी पड़े तो क्या विद्यार्थी की एकाग्रता बन पाएगी, क्या क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा? फर्जी परीक्षार्थियों का धंधा भी चल निकला है। सरकारी स्कूलों को निजी क्षेत्र से प्रतिस्पद्र्धा करनी है। पर्यवेक्षकों के रूप में नियुक्त आइएएस अधिकारियों को इन तमाम बिंदुओं पर गहन मंथन करके सुनिश्चित करना होगा कि मेधावी छात्र ही आगे रहें, नकलची नहीं।
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