Saturday 15 October 2011

कठिन होगी क्षेत्रीय दलों की मान्यता की राह

आनन्द राय, लखनऊ भले ही केंद्रीय निर्वाचन आयोग का यह दावा हो कि क्षेत्रीय दल की मान्यता के लिए उसने जो नये मानक तय किए हैं, उससे मान्यता की राह आसान होगी, लेकिन उत्तर प्रदेश के पिछले चुनावों के नतीजे बताते हैं कि आयोग के नए मानक क्षेत्रीय दल की मान्यता हासिल करने की उम्मीद लगाए कई राजनीतिक दलों की राह में मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। आयोग ने क्षेत्रीय दल की मान्यता के लिए विधायकों की जीत की अनिवार्यता समाप्त करते हुए राज्य में पड़े वैध मतों का आठ प्रतिशत मत पाना अनिवार्य कर दिया है। सूबे के राजनीतिक दलों के लिए इतना मत पाना आसान नहीं है, क्योंकि पिछले चुनावों में सपा को छोड़कर किसी दल को चार प्रतिशत मत भी नहीं मिल सके हैं। अभी तक क्षेत्रीय दल की मान्यता के लिए दो शर्ते थीं अव्वल यह कि राजनीतिक दल को राज्य में पड़े कुल मतों का छह प्रतिशत और दो विधायकों की जीत मिले। या फिर संबंधित दल से राज्य की विधानसभा के चुने गए विधायकों के सापेक्ष तीन प्रतिशत विधायक जीते हों। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को क्षेत्रीय दल की मान्यता प्राप्त थी। बाद में बसपा को राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त हो गया। 2002 के विधानसभा चुनाव के समय अकेले सपा को ही राज्य स्तरीय दल का दर्जा मिला था। चुनाव बाद राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को भी राज्य स्तरीय दल की मान्यता मिल गई। उस चुनाव में रालोद को राज्य में पड़े कुल वैध मतों का मात्र 2.48 प्रतिशत मत ही मिला, लेकिन उसके 14 विधायक जीते। विधायकों की यह संख्या तीन प्रतिशत से अधिक थी। 2007 में रालोद का वोट 2002 के सापेक्ष बढ़कर 3.70 प्रतिशत हो गया, लेकिन उसके विधायकों की संख्या घटकर 10 हो गई। बावजूद इसके न तो रालोद ने छह प्रतिशत मत हासिल किए और न ही राज्य के विधायकों के सापेक्ष तीन प्रतिशत विधायक जीत पाए। इस आधार पर उसकी मान्यता समाप्त हो गई। पिछले लोकसभा चुनाव में पांच सांसद जीतने के बाद रालोद को राज्य स्तरीय दल की मान्यता मिली। 2007 के चुनाव में सपा के 97 विधायक जीते और उसे 25.43 प्रतिशत मत मिला। 2007 के चुनाव में गैर राज्यों के दलों को मिलाकर सूबे में राज्य स्तरीय कुल 12 दल चुनाव मैदान में थे और उनमें सपा को छोड़कर सभी दल निर्धारित आंकड़ा छूने में नाकामयाब रहे। आंकड़े को छूने की बात तो दूर रालोद के अलावा किसी को एक प्रतिशत मत भी नहीं मिले। 2007 के चुनाव में 112 पंजीकृत राजनीतिक दल मैदान में थे और उनमें भी सिर्फ अपना दल को 1.06 प्रतिशत मत मिले। बाकी सभी एक प्रतिशत से नीचे थे। दो विधायकों की जीत हासिल करने वाले आरपीडी को मात्र 00.20 प्रतिशत और एक विधायक जीतने वाले यूपीयूडीएफ को मात्र 00.35 प्रतिशत मत मिले। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हृदय नारायण दीक्षित कहते हैं कि अन्य राज्यों की अपेक्षा यहां की तस्वीर दूसरी होती है। चुनाव सुधार के लिए आयोग राजनीतिक दलों से परामर्श करता है, लेकिन यह फैसला बिना विमर्श के ही हो गया। बीते चुनाव में 0.94 प्रतिशत वोट पाने वाले भासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर कहते हैं कि आयोग के इस फैसले की मार छोटे दलों पर पड़ेगी।
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