नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अन्य पिछड़ी जातियों यानी ओबीसी वर्ग को प्रवेश देने के मानक तय कर दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि ओबीसी छात्रों को सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित न्यूनतम पात्रता अंकों से अधिकतम दस फीसदी अंकों की छूट दी जा सकती है। कोर्ट का यह फैसला दिल्ली विश्वविद्यालय व जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश के मामले में लागू होगा। इस फैसले के बाद साफ हो गया है कि ओबीसी छात्रों को प्रवेश सामान्य वर्ग के अंतिम छात्र के कट ऑफ अंक से दस फीसदी कम अंक पर नहीं बल्कि सामान्य वर्ग के लिए तय न्यूनतम पात्रता अंक से अधिकतम दस फीसदी कम अंकों पर दिया जाएगा। कोर्ट के सामने विवाद यही था कि ओबीसी को प्रवेश में दी जाने वाली दस फीसदी अंकों की छूट सामान्य वर्ग के अंतिम कट ऑफ अंक से मानी जाएगी या न्यूनतम पात्रता अंक से। न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन व ए के पटनायक की पीठ ने यह फैसला शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण को सही ठहराने वाले संविधानपीठ के 14 अक्टूबर 2008 के फैसले को स्पष्ट करते हुए सुनाया है। पीठ ने साफ किया कि संविधानपीठ के फैसले में प्रयोग किए गए कट ऑफ मार्क्स शब्द का मतलब सामान्य वर्ग के लिए तय न्यूनतम पात्रता अंकों से है और जहां पर प्रवेश परीक्षा होती है वहां इसका मतलब पास होने के लिए तय न्यूनतम अंक से है। कोर्ट ने उदाहरण देते हुए बताया कि अगर सामान्य वर्ग के लिए प्रवेश के न्यूनतम पात्रता अंक 50 हैं तो ओबीसी के लिए यह मानक 45 अंक हो सकता है। ओबीसी को ज्यादा से ज्यादा दस फीसदी अंकों की छूट दी जा सकती है। संस्थान 50 से 45 के बीच कोई भी अंक तय कर सकते हैं। संविधानपीठ के फैसले में प्रयुक्त कट ऑफ मार्क्स का मतलब सामान्य वर्ग में प्रवेश पाने वाले अंतिम छात्र के कट ऑफ मार्क्स से नहीं है। कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट की एकल पीठ के गत वर्ष 7 सितंबर के फैसले को सही ठहराया है। कोर्ट ने साफ किया है कि इस फैसले का असर 2011-2012 सत्र के उन मामलों में नहीं पड़ेगा।