जागरण ब्यूरो, चंडीगढ़ : अकाली-भाजपा सरकार अपने ही बनाए कानूनों को बदल रही है। ताजा बदले गए फैसलों में अभी दो माह पहले बनाए पंजाब सिविल सर्विसेज (रेशनलाइजेशन ऑफ सर्टन कंडीशन ऑफ सर्विस एक्ट 2011) को रद कर दिया गया है। बीते कल हुई कैबिनेट बैठक में गैर-एजेंडे के तहत यह निर्णय लिया गया। इस कानून के तहत सरकारी विभागों व निगमों-बोर्डाें में भर्ती होने वाले नए कर्मचारियों को कम से कम तीन वर्ष तक सीमित वेतन पर नौकरी करने के लिए पाबंद कर दिया गया था, जिसका कर्मचारी संगठन और नए भर्ती होने वाले कर्मचारियों के साथ-साथ बेरोजगार वर्ग काफी विरोध कर रहा था। गत पांच अप्रैल को गजट अधिसूचना जारी करते हुए इसे लागू कर दिया गया था और मार्च में विधानसभा सत्र के दौरान इसे पारित कर दिया गया था। इस निर्णय के वापस होने से पांच अप्रैल के बाद नौकरी ज्वाइन करने वाले सरकारी कर्मचारियों और भविष्य में सरकारी नौकरी पर जाने वाले लोगों को भारी राहत मिली है। वापस लिए गए दूसरे फैसले में पंचायती राज एक्ट 1994 का संशोधन शामिल है। 2007 में सत्ता में आने के करीब एक साल बाद होने वाले पंचायत चुनावों के मद्देनजर शिअद-भाजपा सरकार ने सरपंच का चयन पंचों के माध्यम से करने का फैसला ले लिया था, जबकि पहले सरपंच का चुनाव सीधा होता था। पंचों के द्वारा सरपंच के चयन का निर्णय भले ही गांवों में बढ़ रही आपसी गुटबाजी को कम करने के लिए लिया गया था लेकिन इस निर्णय के कारण गांवों की गुटबंदी और बढ़ गई। यहां तक कि सत्तारूढ़ दल से संबंधित पंच भी आपसी गुटबंदी का शिकार हुए और इस निर्णय का सबसे ज्यादा खामियाजा सत्तारूढ़ अकाली दल को ही भुगतना पड़ा था। कल की कैबिनेट बैठक में पंचायती राज एक्ट में पुन: संशोधन को स्वीकृति देते हुए सरपंचों का चयन सीधी चुनाव प्रक्रिया से कर दिया।