जागरण टीम, जालंधर : शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च करने के दावे तो कर रही है, लेकिन सच्चाई कोसों दूर हैं। स्कूलों में शिक्षकों की कमी तो है ही, कई स्कूलों की अपनी छत भी नहीं है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि शिक्षा का स्तर कैसे उठेगा। पठानकोट जिले में तो बिन गुरु ज्ञान देने की कोशिश की जा रही है तो परिणाम कैसे अच्छे हो सकते हैं। यहां के अधिकतर स्कूलों में अध्यापकों के पद खाली हैं। गुरदासपुर में आदर्श स्कूलों में बहुत सी सुविधाओं की कमी है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत आबंटित राशि में बड़े स्तर पर घपले हुए हैं। अध्यापकों की भर्ती के बावजूद शिक्षा के स्तर में सुधार नहीं हो पाया है। अमृतसर में उच्च शिक्षा में सुधार के लिए सरकारी रेगुलेटरी कमेटी का गठन करना समय की मांग है ताकि शिक्षा में हो रही अनियमितताओं पर अंकुश लग सके। कोई भी सरकारी कमेटी न होने के कारण यूनिवर्सिटी से लेकर कालेज स्तर तक मर्जी का बोलबाला है। होशियारपुर में शैक्षणिक परिदृश्य इतना बदल गया है कि शिक्षा का अधिकार लागू होने के बावजूद अभिभावकों का निजी स्कूलों से मोह नहीं छूट रहा है। शिक्षा की दुकानदारी इस कद्र बढ़ गई है कि सरकारी स्कूलों की हालत दिन ब दिन पतली होती जा रही है। हाल यह है कि हर वर्ष प्राइमरी स्कूलों में विद्यार्थी दर कम होती जा रही है। रूपनगर में हालात खराब हैं। पंजाब सरकार बिन गुरुओं के शिक्षा सुधार का दम भर रही है। पहले ही गुरुओं का अकाल पड़ा हुआ है। ऊपर से सर्वशिक्षा अभियान व मिड-डे-मील सहित कई महत्वाकांक्षी योजनाएं भी लादी हुई हैं। ऐसे में शिक्षा का स्तर कहां पर होगा, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। फिर भी सरकारी स्कूली शिक्षा के प्रति लोगों का विश्वास कायम नहीं हो रहा है। अभी भी निजी व एडिड स्कूलों के मोहपाश में अभिभावक फंसे हुए हैं। इस वजह से सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम होती जा रही है। अधिकांश स्कूलों में एक अध्यापक के दम पर स्कूल दौड़ रहा है। पहली से लेकर पांचवीं तक की शिक्षा तथा अन्य प्रशासनिक काम का बोझ शिक्षकों पर है। इसी तरह मिडल, हाई तथा सीनियर सेकेंडरी स्कूलों का भी यही हाल है। इन स्कूलों में भी बीते छह-सात सालों से लगातार विद्यार्थियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि बीते साल से विद्यार्थियों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई है।