Thursday, 15 September 2011

पगार ने मोहा गुरुजी का मन

अरूणेश, पानीपत साइंस और कॉमर्स के प्रति छात्रों के बढ़े क्रेज ने यह साबित कर दिया है कि परंपरागत शिक्षा की समय-समय पर मांग रहेगी ही। चाहे हाईटेक युग में एक से बढ़कर एक नई तकनीकी विषय के नाम पर नैनो शिक्षा देने की बात क्यों न की जाए। हाई-फाई शिक्षा देने की होड़ ऐसी चली कि राज्य में देखते-देखते सैकड़ों इंजीनियरिंग कॉलेज व व्यावसायिक संस्थान खुल गए। साथ ही तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को रोजगार हाथों हाथों-हाथ मिलने लगे। इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रदेश के छात्रों का रुझान इंजीनियरिंग के प्रति इस कदर बढ़ा कि शैक्षणिक वर्ष 2007-08,08-09, और 09-10 के दौरान प्रदेश के कई निजी कॉलेजों में साइंस और कॉमर्स की सीटें 25 से 30 प्रतिशत तक खाली रह गई थी, लेकिन इस वर्ष का दृश्य ही कुछ और है। प्रदेश के सरकारी के साथ निजी कॉलेजों में भी साइंस और कॉमर्स की सीटें खाली नहीं है। खाली होना तो दूर दाखिले के लिए अंतिम कट ऑफ लिस्ट भी 60 फीसद से अधिक रही । इसके विपरीत इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए 45 फीसद वाले छात्रों द्वारा नामांकन लेने के बावजूद निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की 50 प्रतिशत सीटें खाली हैं। इसके कारणों की पड़ताल करने पर पता चला कि छात्रों का रुझान तेजी से साइंस और कॉमर्स विषय के प्रति बढ़ रहा है, क्योंकि सरकार द्वारा दिए गए नए वेतनमान के बाद शिक्षकों के वेतन में भारी बढ़ोत्तरी हो गई है। साथ ही अतिथि अध्यापकों के वेतनमान में भी समय-समय पर बढ़ोत्तरी की जा रही है। दूसरी ओर कॉलेज में लेक्चरर का वेतन 30 हजार से शुरू होता है और प्रोफेसर एक लाख रुपये की राशि प्रति माह तक उठा रहे हैं। इसके विपरीत इतनी राशि वेतन के रूप में युवाओं को निजी कंपनियों में घंटों काम करने के बावजूद नसीब नहीं हो पा रही है। इतना ही हरियाणा में नियमित रूप से शिक्षकों की भर्ती करने की प्रक्रिया चल पड़ी है। इस बारे में दीनबंधु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलसचिव आर. अरोड़ा से पूछने पर उन्होंने कहा कि जिस गति से हरियाणा और अन्य राज्यों में शिक्षकों के वेतन में बढ़ोत्तरी हुई है, उसके चलते इस जॉब के प्रति छात्रों का आकर्षण बढ़ा है।
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