Thursday, 16 February 2012

गंभीर संकेत

किसी ने अनुमान नहीं लगाया होगा कि व्यावसायिकता की बेतरतीब होड़ बेरोजगारों की एक नई जमात खड़ी कर देगी। धन कमाने की लालसा ने कदमों को आगे धकेला, बाकी कसर व्यवस्थागत खामियों, कमजोरियों ने पूरी कर दी और देखते ही देखते हर शहर में जेबीटी, बीएड शिक्षण संस्थानों की भरमार हो गई। अनियमिताओं, नियमों को मनमर्जी से अपनी सुविधानुसार व्याख्यायित किए जाने, मोटी फीस लेने, डिग्री दिलाने का ठेका लेने आदि शिकायतें पहले संबंधित विभाग, फिर कोर्ट तक पहुंची। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने फर्जीवाड़े में संलिप्त व नियमों के खिलाफ चल रहे जेबीटी एवं बीएड कॉलेजों का निरीक्षण कर जांच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था पर नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर एजुकेशन (एनसीटीई) ने न सक्रियता दिखाई, न ही रुचि। राज्य सरकार ने तो यह कह कर पिंड छुड़ा लिया कि उसने एनसीटीई को लिख दिया था, पर उसने कोई कार्रवाई नहीं की। अब बात आती है कि दोनों स्तरों पर जवाबदेही को इतना महत्वहीन क्यों बना दिया गया। थोक भाव से शिक्षण संस्थाओं को अनुमति देने का कारण क्या था? केंद्र से मंजूरी और राज्य में संस्थानों की धड़ाधड़ स्थापना के बीच जांच, निरीक्षण, समीक्षा जैसा कोई कारक सरकार ने कायम क्यों नहीं किया? कसौटी के किसी मानक पर इस भेड़चाल को क्यों नहीं आंका गया? लगता है यदि माननीय उच्च न्यायालय का नया आदेश नहीं आता तो तमाम घालमेल इसी तरह चलता रहता। अदालत के पिछले वर्ष के आदेश की अवमानना हुई, अब प्रदेश सरकार को अपने स्तर पर यह सुनिश्चित करना होगा कि नए आदेश का पालन हर स्तर पर किया जाए, चाहे इसके लिए उसे केंद्र सरकार के शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्रालय तथा एनसीटीई पर अतिरिक्त दबाव ही क्यों न बनाना पड़े। राज्य सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि अमल में खामियों की जवाबदेही सिर्फ उसी की बनती है। एनसीटीई के क्षेत्रीय निदेशक को हाई कोर्ट की कड़ी फटकार हरियाणा के लिए भी कड़ी परोक्ष चेतावनी है। यदि जेबीटी व बीएड कॉलेजों को शिक्षा की खालिस दुकान बनने से रोकने में गंभीरता नहीं दिखाई तो उसे भी कटघरे में खड़ा होना पड़ सकता है। मान्यता के नियमों में सख्ती लाई जाए।
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