जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली अगर स्वास्थ्य मंत्रालय ने तुरंत पहल नहीं की तो इस साल डॉक्टरी की 25 हजार सीटों पर संकट खड़ा हो सकता है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों ने कहा है कि अगर सरकार ने उन पर भी साझा प्रवेश परीक्षा अनिवार्य की तो मजबूरन वे इस साल अपने यहां एक भी दाखिला नहीं लेंगे। देश के साठ फीसदी एमबीबीएस डॉक्टर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों से ही निकलते हैं। देश भर के निजी मेडिकल कॉलेजों ने मंगलवार को यहां बैठक कर मेडिकल साझा प्रवेश परीक्षा का मुखर विरोध करने का मन बनाया है। ऑल इंडिया प्राइवेट मेडिकल कॉलेज एंड प्राइवेट यूनिवर्सिटीज वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव अहमद अशफाक करीम ने कहा कि साझा प्रवेश परीक्षा के बाद देश में मेडिकल शिक्षा का स्तर बहुत गिर जाएगा। इसमें गांव के गरीब छात्रों का दाखिला मिलना और मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि यह परीक्षा सीबीएसई बोर्ड आयोजित करेगा। जबकि अधिकांश छात्र अलग-अलग राज्यों के बोर्ड से 12वीं तक की पढ़ाई करते हैं। इसी तरह उनका पाठ्यक्रम और भाषा भी अलग है। उन्होंने इसे दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए भी प्रतिकूल बताया है। उनके मुताबिक विभिन्न राज्यों के आरक्षण के नियम और कोटे का प्रतिशत भी अलग-अलग है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के प्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद से मिल कर अपना एतराज दर्ज करवाया है। इनका कहना है कि मेडिकल शिक्षा में निजी क्षेत्र की इतनी बड़ी भूमिका होने के बावजूद इतना बड़ा फैसला बिना उनसे कोई विमर्श किए ही ले लिया गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि बिना सरकारी मदद के चलने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों को दाखिला अपने मुताबिक लेने का हक है। करीम के मुताबिक इस समय सुप्रीम कोर्ट की बताई व्यवस्था के मुताबिक ही निजी कालेजों में दाखिले हो रहे हैं। पूरे देश में एमबीबीएस की लगभग 41 हजार सीटें हैं। इनमें से लगभग 25 हजार प्राइवेट कॉलेजों में हैं। हाल ही में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने सभी सरकारी और गैर सरकारी कालेजों के लिए साझा प्रवेश परीक्षा शुरू करने का एलान किया है।